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जानिये ,भारत में ज्योतिष के 12 प्रकार कौन से हैं ,  जिनसे देखा जाता है भविष्य

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में, भाग्य या भविष्य को अलग-अलग तरीके से बताया जाता है। भारत में लगभग 150 से अधिक ज्योतिष विद्या माना जाता है। प्रत्येक विद्या कहती है कि वह आपके भविष्य को बता सकती है। यह भी माना जाता है कि हर विद्या भविष्य बता सकती है, लेकिन जानकार कम हैं और भटकाने वाले अधिक हैं। सवाल उठता है कि आखिर किस विद्या से हम अपना भविष्य जान सकते हैं, यहाँ कुछ लोकप्रिय ज्योतिष विद्या की जानकारी दी गई है।
1. कुंडली ज्योतिष: यह एक कुंडली का आधार है। यह सिद्धांत ज्योतिष, संहिता ज्योतिष और होरा शास्त्र से बना है। इस विज्ञान के अनुसार, एक व्यक्ति के जन्म के समय आकाश में जो ग्रह, तारा या नक्षत्र था, उसके स्थान पर आधारित कुंडली बनाई जाती है। जातक का भविष्य बारह राशियों पर आधारित नौ ग्रहों और 27 नक्षत्रों से बताया जाता है। वर्तमान समय में, इस विषय को कई भागों में विभाजित किया गया है, लेकिन चार प्रमुख भाग इसे मानते हैं। नवजात ज्योतिष, कतार्चिक ज्योतिष, प्रतिघंटा या प्रश्न कुंडली और विश्व ज्योतिष विद्या ये चार हैं।
2. लाल किताब अध्ययन: यह मूलत उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश और कश्मीर राज्यों का ज्ञान है। ज्योतिष के परंपरागत सिद्धांत से अलग, इसे ‘व्यावहारिक ज्ञान’ कहा जाता है। यह बहुत कठिन विद्या माना जाता है। कुंडली को देखे बिना उपाय बताकर समस्या का समाधान कर सकते हैं। लाल किताब के फरमान नामक पहली पुस्तक इस विद्या के सिद्धांतों को संकलित करती थी। माना जाता था कि किताब को उर्दू में लिखा गया था, इसलिए लोग इसे गलत समझते थे।
3. अंक शास्त्र ज्योतिष: इस भारतीय शिक्षा को अंकशास्त्र भी कहा जाता है। इसमें प्रत्येक राशि, ग्रह, नक्षत्र आदि के अंक बताए गए हैं। फिर जन्म तारीख, वर्ष आदि के जोड़ से भाग्यशाली अंक निकाले जाते हैं।
4. नंदी नाड़ी ज्योतिष: यह दक्षिण भारत में बहुत लोकप्रिय है, जहां लोगों को ताड़पत्र देकर भविष्य बताया जाता है। ज्योतिष विद्या को जन्म देने वाले भगवान शंकर के गण नंदी हैं, इसलिए इसे “नंदी नाड़ी” कहा जाता है।
5. पंच पक्षी सिद्धान्त: दक्षिण भारत में भी इसे मानते हैं। इस ज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार, समय को पाँच हिस्सों में बाँटकर प्रत्येक हिस्से को एक अलग पक्षी का नाम दिया गया है। इस सिद्धांत के अनुसार, पक्षी की स्थिति उस कार्य का फल निर्धारित करती है। गिद्ध, उल्लू, कौआ, मुर्गा और मोर हैं पंच पक्षी सिद्धान्त के पाँच पंक्षी। आपका पक्षी आपके लग्न, नक्षत्र और जन्म स्थान के आधार पर जानकर आपका भविष्य बताया जाता है।
6. हस्तरेखा ज्योतिष: किसी व्यक्ति का भूत और भविष्य हाथों की आड़ी-तिरछी और सीधी रेखाओं के अलावा चक्र, द्वीप, क्रास आदि का अध्ययन करके बताया जा सकता है। यह बहुत पुरानी विद्या है और भारत के सभी राज्यों में उपलब्ध है। 7. ग्रह ज्योतिष: वैदिक काल में नक्षत्रों पर आधारित ज्योतिष अधिक लोकप्रिय था। जिस नक्षत्र में कोई जन्म लेता था, उसके अनुसार उसका भविष्य बताया जाता था। नक्षत्र 27 हैं।
8. अँगूठा शास्त्र: यह भी दक्षिण भारत में लोकप्रिय है। इसके अनुसार, अँगूठे की छाप लेकर उस पर उभरी रेखाओं को देखकर जातक का भविष्य बताया जाता है।
9. सामुद्रिक विद्या: भारत में यह विद्या सबसे प्राचीन है। इसमें माथे की रेखा, नाक-नक्श और चेहरे की बनावट के साथ-साथ व्यक्ति के चरित्र और भविष्य का विश्लेषण किया जाता है।
10. चीनी योग:- चीनी ज्योतिष में बारह वर्ष पशुओं का नाम है। “पशु-नामांकित राशि-चक्र” इसका नाम है। यही उनकी बारह राशियाँ हैं, जिन्हें “वर्ष” या “संबंधित पशु-वर्ष” कहते हैं।
यह वर्ष निम्न हैं हैं: चूहा, बैल, चीता, बिल्ली, ड्रैगन, सर्प, अश्व, बकरी, वानर, मुर्ग, कुत्ता और सुअर जिस वर्ष में कोई व्यक्ति जन्मता है, उसी वर्ष की राशि उसके चरित्र, गुणों और भाग्य का गणना करती है।
11. वैदिक ज्योतिष: वैदिक ज्योतिषी राशि चक्र, नवग्रह और जन्म राशि के आधा र पर गणना करते हैं। मूलत: नक्षत्रों की गति और गणना आधार हैं। वेदों का ज्योतिष मूलतः खगोलीय गणना और काल को विभाजित करने के लिए था, न कि किसी व्यक्ति के भविष्य बताने के लिए।
12. टैरो कार्ड: टैरो कार्ड में पत्ते ताश की तरह हैं। जब कोई टैरो कार्ड जानकार से मिलता है, तो वह एक कार्ड निकालकर उसमें लिखा उसका भविष्य बताता है।

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