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Thursday, July 17, 2025
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प्रदेश में श्रम कानून की धज्जियां उड़ाने वाले निरंकुश क्यों है ?

पूरब टाइम्स भिलाई रायपुर . छत्तीसगढ़ शासन ने श्रमिकों को प्रशासकीय संरक्षण प्रदान करने वाले श्रम कानूनों को लागू किया हुआ है . इसकी जानकारी लिखित में है और इनको लागू करना प्रत्येक विभाग की कानूनी बाध्यता है . अनेक विभाग के अधिकारियों व ठेकेदारों के द्वारा  पूर्ण जानकारी नहीं होने के बावजूद जितनी जानकारी है उसमें से भी लेबर हितों पर डंडी मार ली जाती है . अमूमन यही हाल बड़े प्राइवेट संस्थानों का भी है . उदाहरण के लिये इरीगेशन , पीडब्ल्युडी इत्यादि में टेंडर मैन्युअल के अनुसार श्रम कानून को लागू कराना , उसी विभाग के अधिकारी की होती है . दूसरे शब्दों में कहें तो ठेकेदारों पर श्रम कानून लागू करवाना लेकिन वे ठेकेदारों के द्वारा जमा किये कागजी भुगतान राशि को आधार मानकर अपनी ज़िम्मेदारी से इतिश्री कर लेते हैं जबकि उन्हें अनेक जानकारियों को नियमानुसार भौतिक रूप से सत्यापित करना उनपर विधानिक दायित्व होता है . अमूमन यही हालात निगरीय निकाय के सफाई समेत अन्य ठेकों की भी है . इसके अलावा श्रम विभाग के द्वारा श्रम कानून की अवहेलना करते अनेक प्राइवेट शिक्षा संस्थानों व अस्पतालों पर कड़ी कार्यवाही नहीं करना भी संदेह को जन्म देता है . पूरब टाइम्स की एक रिपोर्ट ..

क्या करता है श्रमायुक्त कार्यालय और उसकी विभागीय जिम्मेदारी क्या है ? जान लीजिए!

श्रमायुक्त कार्यालय का अधिनियमित कर्तव्य कि वह प्रदेश के सभी कार्यस्थलों पर नियोजित मजदूरों को उनके मजदूरी के प्रकार के आधार पर वर्तमान लागू निर्वाह व्यय सूचनांक अनुसार  मजदूरी की न्यूनतम दर का संदाय किया जाना सुनिश्चित करवायें और किसी भी प्रकार के विवाद की स्थिति से निपटने के लिए मजदूरों की हाजरी रजिस्टरों एवं अधिलेखों का रख रखाव की लेखबद्ध स्थिति के आधार पर पीड़ित या कार्यस्थल पर नियोजित स्थिति के दौरान दुर्घटना ग्रस्त हुए मजदूर को उसकी उसकी क्षतिपूर्ति दिलवाने का पदेन कर्तव्य पूरा करें । उल्लेखनीय है कि, क्षतिपूर्ति दिलवाने के लिए श्रमायुक्त कार्यालय मजदूरी के संदाय के लिए उत्तरदायित्व नियोक्ता और ठेकदार से नियमतः मजदूरी की कलावधि की गणना करवाकर भुगतान दिलवाना के लिए निर्णायक भूमिका निभाने वाला प्राधिकृत अधिकारी भी होता है । जिसका कार्यालय छत्तीसगढ़ के प्रत्येक जिले में है . जिसमें नियुक्त श्रमायुक्त छत्तीसगढ़ द्वारा प्राधिकृत अधिकारी जिला स्तर पर श्रमिकों के हित रक्षण की जिम्मेदारी पूरी कर रहें है ।

छत्तीसगढ़ सरकार ने श्रमिकों को उनके कार्यस्थल और श्रम के प्रकार के आधार पर व्याहारिक कानूनी संरक्षण प्रदान करने के लिए आवश्यक नियम कानून लागू किए है . जिनमें प्रमुख है मजदूरी संदाय अधिनियम 1936, साप्ताहिक अवकाश दिन अधिनियम 1948 , न्यूनतम मजदुरी अधिनियम 1948, बोनस संदाय अधिनियम 1965, ठेका श्रम (विनियमन और उत्सादन) अधिनियम 1970, सामान पारिश्रमिक अधिनियम 1976, अंतरराजकीय प्रवासी कर्मकार (नियोजन का विनियमन और सेवा शर्त) अधिनियम 1979, बाल श्रम (प्रतिषेध और विनियमन) अधिनियम 1986 , भवन और अन्य सन्निर्माण कर्मकार (नियोजन तथा सेवा शर्त नियोजन) अधिनियम 1996 

छत्तीसगढ़ में श्रम कानून श्रमिकों को विशेष संरक्षण दे सके इसलिए सरकार ने श्रमिक पंजीयन एवं श्रमिक उत्थान की जिम्मेदारी नगरीय निकायों पर सौंपी है . उल्लेखनीय है कि नगरीय निकाय वर्तमान में अधिकांश कार्य ठेकेदारों से करवा रहें है इसलिए निर्माण कार्य और सफाई ठेकेदारों को ठेका देते वक्त निगम आयुक्त श्रमिक अधिकार संरक्षण करने का निगम अनुबंध भी ठेकेदार से कर लेता है और ठेकदार के विरुद्ध कोई श्रमिक शिकायत करता है तो ठेकेदार के विरुद्ध जिले के श्रमायुक्त कार्यालय में विधिवत शिकायत दर्ज करवाकर नियमित कार्यवाही भी करवाता है ।

पीडब्ल्युडी और जल संसाधन जैसे राज्य सरकार के बड़े विभाग श्रम कानून के प्रावधानित नियमों का समावेश कर ठेकेदार से ठेका अनुबंध करते हैं इसलिए ठेकेदारों को ठेका अनुबंध शर्तों के आधार पर नियोजित श्रमिकों के अधिकारों की सुनिश्चितता हेतु बाध्य कर दिया है . अतः पीड़ित या व्यथित श्रमिकों को क्षतिपूर्ति दिलाना अब संभव हो गया और श्रम कानून का उल्लंघन करने वाले ठेकेदार का पंजीयन व्यक्तिगत शिकायत दर्ज करवाकर निरस्त करवाना सरल हो गया है ।

अमोल मालूसरे,सामाजिक कार्यकर्ता

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