बिलासपुर हाईकोर्ट ने गरीब भूमिहीन किसानों को आवंटित शासकीय भूमि का कब्जा दिलाने के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने मुंगेली जिले के कलेक्टर और तहसीलदार को निर्देश दिया है कि किसानों की पट्टे वाली जमीन को राजस्व अभिलेखों में दर्ज कर सीमांकन और बटांकन की प्रक्रिया जल्द पूरी की जाए। इसके बाद किसानों को उनकी जमीन का वास्तविक कब्जा सौंपा जाए।
28 साल से जमीन के हक के लिए संघर्ष
याचिकाकर्ताओं में शामिल रामेश्वर पुरी गोस्वामी, उमेद राम यादव और अन्य 16 किसानों ने अधिवक्ता मिर्जा हफीज बेग के माध्यम से हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की थी। याचिका में बताया गया कि ग्राम परसवारा, तहसील लोरमी की शासकीय भूमि (रकबा 15/1, कुल 118.2510 हेक्टेयर) में से प्रत्येक गरीब भूमिहीन किसान को एक-एक एकड़ जमीन आवंटित की गई थी। हालांकि, 5 मई 1997 को आवंटन होने के बावजूद यह जमीन राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं की गई, जिससे किसान अपने हक से वंचित रह गए।
वन विभाग ने भी रोकी राह
किसानों ने कई बार प्रशासन से गुहार लगाई, लेकिन उनकी समस्या का समाधान नहीं हुआ। इस दौरान वन विभाग के अधिकारियों ने उन्हें भूमि पर पौधे लगाने से भी रोक दिया, जिससे उनकी आजीविका पर संकट गहरा गया।
कोर्ट का आदेश: तुरंत पूरी करें प्रक्रिया
हाईकोर्ट ने प्रशासन को निर्देश दिया कि आवंटित भूमि को तुरंत राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज किया जाए और सीमांकन व बटांकन की प्रक्रिया जल्द पूरी कर किसानों को कब्जा दिया जाए। प्रशासन ने 16 अगस्त 2022 को इस प्रक्रिया की शुरुआत तो कर दी थी, लेकिन अभी तक किसानों को पूरी तरह से कब्जा नहीं मिल पाया था।
सरकारी लापरवाही का बड़ा उदाहरण
याचिका में प्रशासनिक लापरवाही और सरकारी नीतियों के धीमे क्रियान्वयन को उजागर किया गया। गरीब किसान 28 साल से अपनी जमीन के लिए संघर्ष कर रहे थे, लेकिन सरकारी उदासीनता के कारण वे अब तक अपने हक से वंचित थे। हाईकोर्ट के इस सख्त रुख के बाद अब किसानों को उनकी जमीन मिलने की उम्मीद जागी है।