अक्ति तिहार, जेनला अक्षय तृतीया घलो कहे जाथे, छत्तीसगढ़ मं बड़े धूमधाम ले मनाय जाथे। ये तिहार खेती-किसानी, बिहाव-बियाह अऊ बोनी-बजार ले जुड़ल हे।
का होथे अक्ति तिहार मं?
- पुतरी-पुतरा के बिहाव के सगुन:
- ए दिन छत्तीसगढ़ के गाँव-गंवई मं नान पुतरी-पुतरा (लइका-लइकी) के नंदिया-गोड़वा के बिहाव के रस्म होथे।
- एकर मतलब ये नइ कि आजे बिहाव हो जाही, बल्कि ये दिन सगुन मान के बिहाव तय करे जाथे।
- नवा बोनी (खेती के सुरुआत):
- किसान मन अपन खेत मं पहिली बेर हल चलाथें, जेकरला नवा बोनी कहे जाथे।
- धरती माता के पूजा करके बीज बोये जाथे, ताकि फसल हर सुखदाई अऊ भरपूर होवय।
- सोहारी अऊ सगुन चीज बनथे:
- घर-घर मं लापसी, पूरी, चिला, कढ़ी-भात जइसन परसाद बनाय जाथे।
- बहिनी मन अपन भैया ला सगुन देवय, जइसे चांउर, चना, नारियल, गमछा अऊ नरियल पानी।
- गाँव-गाँव मं मेला लगथे:
- कइ गाँव मं ए दिन हाट-बाजार लागथे, लोक नाचा-गाना, बइठका अऊ ददरिया होथे।
- अक्ति के सांस्कृतिक महत्व:
- ये तिहार धार्मिक, कृषि, अऊ सामाजिक परंपरा के संग जोड़ाय हे।
- एकर संग छत्तीसगढ़िया पहचान के अऊ गजब परछी दिखथे।
- सब्बो छत्तीसगढ़िया बहिनी-भाई मन ला अक्ति तिहार के गाड़ा बधाई! धरती मय्या तोर अंगना हर हरियर रहय, सुख-समृद्धि ल बनाय रखय।