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Wednesday, June 18, 2025
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क्या है लाफोरा बीमारी, किस उम्र से होती है शुरू, कितने समय में होती है ठीक

लाफोरा डिजीज दुर्लभ लेकिन बेहद गंभीर बीमारी है. इसका जल्द पता लगना और सही देखभाल बहुत जरूरी है. अगर आपके परिवार में कभी किसी को किशोरावस्था में मिर्गी के साथ याददाश्त या चलने में दिक्कत हुई हो, तो डॉक्टर से जरूर संपर्क करें.
कभी-कभी हमारे शरीर में ऐसी दुर्लभ बीमारियां हो जाती हैं जिनके बारे में ज़्यादा लोग नहीं जानते और समय रहते इलाज नहीं मिलने से हालात बिगड़ सकते हैं. ऐसी ही एक बीमारी है लाफोरा. यह एक दुर्लभ और गंभीर न्यूरोलॉजिकल बीमारी है जो दिमाग पर असर डालती है. इसकी शुरुआत अक्सर किशोरावस्था में होती है और धीरे-धीरे यह मांसपेशियों, सोचने-समझने की शक्ति और रोज़मर्रा की गतिविधियों को प्रभावित करने लगती है. आइए जानते हैं इसके लक्षण, कारण, जांच और इलाज के बारे में.

क्या है लाफोरा डिजीज

लाफोरा डिजीज एक जेनेटिक बीमारी है जो दिमाग में लाफोरा बॉडीज नाम के ग्लाइकोजन (शर्करा से बनी) जमा होने की वजह से होती है. ये जमा होने वाली चीजें दिमाग के सेल्स को नुकसान पहुंचाती हैं और तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) को धीरे-धीरे कमजोर करने लगती हैं. इस बीमारी को लाफोरा बॉडी डिजीज या प्रोग्रेसिव मायोक्लोनस एपिलेप्सी भी कहा जाता है.

किन उम्र में होती है यह बीमारी?

अधिकतर मामलों में यह बीमारी 10 से 17 साल की उम्र में सामने आती है. हालांकि शुरुआत में इसके लक्षण मामूली लग सकते हैं, लेकिन धीरे-धीरे ये गंभीर हो जाते हैं और आगे चलकर इससे मरीज की परेशानी बढ़ने लगती है. ऐसे में शुरुआती दौर में इस बीमारी की पहचान होने से डॉक्टर को इलाज करने में आसानी होती है.

लक्षण क्या होते हैं?

मिर्गी के दौरे (Seizures): अचानक शरीर हिलने लगना या बेहोशी आना.

मायोक्लोनस: शरीर के किसी हिस्से में झटके या कंपन होना.

धीरे-धीरे मानसिक क्षमता कम होना: पढ़ाई में ध्यान न लगना, चीजें भूलना या व्यवहार में बदलाव.

चलने-फिरने में दिक्कत: संतुलन बिगड़ना या मांसपेशियों में कमजोरी.

दृष्टि पर असर: कुछ मामलों में दृष्टि भी कमजोर होने लगती है.

इस बीमारी का कारण क्या है?

यह बीमारी जेनेटिक यानी आनुवंशिक होती है. इसका मतलब है कि अगर माता-पिता में किसी में भी इस बीमारी से जुड़ा जीन दोषपूर्ण होता है, तो बच्चा इससे प्रभावित हो सकता है. यह ऑटोसोमल रिसेसिव डिसऑर्डर है, यानी दोनों माता-पिता से दोषपूर्ण जीन मिलने पर ही बीमारी होती है.

कैसे होती है पहचान?

EEG (Electroencephalogram): दिमाग की बिजली गतिविधि को देखने के लिए.

MRI स्कैन: दिमाग की बनावट में बदलाव देखने के लिए.

जननिक टेस्टिंग: जीन में दोष की पहचान के लिए.

स्किन बायोप्सी: त्वचा की जांच करके लाफोरा बॉडी की पुष्टि की जाती है.

क्या है इलाज?

अभी तक लाफोरा डिजीज का कोई पक्का इलाज नहीं है. लेकिन इसके लक्षणों को कम करने और मरीज की जिंदगी थोड़ी आसान बनाने के लिए कुछ दवाइयां दी जाती हैं, इससे मरीज दवा लेने के बाद राहत महसूस करता है. इस बीमारी की कुछ दवाएं हैं, जैसे,

  • मिर्गी के दौरे कम करने की दवाएं
  • फिजियोथेरपी और स्पीच थेरपी
  • पोषण और देखभाल पर विशेष ध्यान
  • बायोटेक्नोलॉजी और जेनेटिक रिसर्च में चल रहे नए प्रयासों से भविष्य में इसका इलाज संभव हो सकता है.

कितनी खतरनाक है यह बीमारी?

यह एक प्रोग्रेसिव बीमारी है यानी समय के साथ बढ़ती जाती है. शुरू में केवल झटके लगते हैं, लेकिन कुछ वर्षों में मरीज बोलने, सोचने और चलने की क्षमता खो देता है. ज़्यादातर मामलों में मरीज 10 साल के अंदर गंभीर अवस्था में पहुंच जाता है.

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