सिविल इंजीनियरिंग में डिग्री लेकर मैं , पूना में शिर्के सिपोरेक्स ( मल्टीनेशनल कंपनी) में नौकरी के शुरूआती दौर में था। डेढ़ साल के भीतर सन् 1985 के अंत में डिजाइन आफिस से क्वालिटी कंट्रोल, फिर क्वालिटी कंट्रोल से डेपुटेशन पर प्रोजेक्ट इंजीनियर इंचार्ज बनाकर ‘शांति रक्षक’ साईट पर भेजा गया। मै साथ ही, सिम्बायोसिस में मैनेजमेंट के लिये नाईट कालेज में पढ़ रहा था। मुझ जैसे जूनियर के लिए यह बहुत गर्व की बात थी। उस साईट पर उस समय एक तरफ प्रीकास्ट कालम बीम बनाने का यार्ड था और दूसरी तरफ जर्मनी से आई पोटेन क्रेन के माध्यम से इरेक्शन का काम होता था , ग्राउंड फ्लोर + 3 यानि 4 फ्लोर की कुल 32 बिल्डिंग थी।
एक माह जमकर कार्य करने के दौरान मैंने देखा कि क्रेन इरेक्शन का एक मुकादम जिसकी उम्र लगभग 70 वर्ष होगी, हमेशा खाट पर बैठ कर पान तम्बाकू खाता रहता और वहीं से काम का डायरेक्शन देता रहता था। वह धोती, बन्डी व टोपी पहनता था। उसका नाम बाबू रोकडे था। मैंने उसका रिकार्ड चेक किया। वह डेढ़ से दो दिन में 1 क्रेन खड़ी कर देता और उसे डबल हाजिरी तथा 1 दिन की पेड छुट्टी दी जाती थी । साइट के लेबर भी उसका बहुत सम्मान करते थे । हिसाब देखा तो पाया कि उसे लगभग 4500 से 5000 रूपये के बीच प्रतिमाह तनख्वाह मिलती थी। मेरी तनख्वाह उस समय 2000 रूपये थी। मैं जब कभी उसके सामने से गुजरता, वह एक बार मुस्कुराता और फिर अपने कार्य पर लग जाता था । एक डेढ़ माह के दौरान मेरी साईट पर धाक जम गयी थी। वह मुझसे बेखौफ अपने काम पर लगे रहता था, उसकी मुस्कुराहट मुझे बहुत चुभने लगी। एक दिन मैंने उसकी बादशाहत खत्म करने का फैसला किया। उससे कहा कि तुम क्रांक्रिटीकरण का काम देखो क्रेन का काम मैं करवा लूंगा। उसने मुझसे कहा, अभी आपसे यह काम नही हो पायेगा, पहले आप सीख लीजिये फिर आराम से करवा सकेगें। मैं चिढ़ गया और उससे बोला, मैंने तुम्हे जो कहा है करो, मैं प्रोजेक्ट इंजीनियर इंचार्ज हूं, वह, जैसी आपकी मर्जी साहब, बोला और चला गया।
मैंने अपनी पूरी टीम के साथ क्रेन इरेक्शन का कार्य चालू किया। मैंने इसे एक चैलेंज की तरह लिया। खुद से कहा , जब एक अनपढ़ मुकादम इसे आसानी से खड़ा करवा देता है तो मैं तो एक ग्रैजुएट इंजीनियर हूं। क्रेन का पूरा मेन्युवल अच्छी तरह से पहले ही पढ़ चुका था। 3 दिन तक दिन-रात मेहनत के बाद जब क्रेन लगभग इरेक्ट हो गई थी, तब पता चला कि एक गलत मेंबर हमने नीचे लगा दिया है। हमें क्रेन पूरी तरह फिर से खोलनी पड़ी। अब यह क्रेन ठीक से खड़ी करना जैसे मेरी प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गई थी । मैंने घर व कॉलेज जाना बंद कर दिया और वहीं साइट पर खाट लगाकर सोने लगा । छठवी शाम को जब क्रेन पूरी तरह इरेक्ट हो गया तो उस क्रेन से एक कॉलम इरेक्शन करने की कोशिश में ,वह पूरी तरह से एक तरफ झुकने लगी। हमें पता लगा कि उसका एलाईनमेन्ट ठीक नही था, कहीं का नट ज्यादा टाइट व कहीं से ढ़ीला हो गया था। मैं पूरी तरह से टूट गया था । मेरे साइट के साथी कहने लगे कि बाबू रोकडे क़ो बुला देते है, वह कुछ ही घंटो में सब कुछ ठीक कर देगा। 6 दिन और रात लगातार काम करने बाद ऐसी बात सुनने से मेरे अहम को बहुत चोट लगी। । अपने साइट ऑफ़िस आकर अपनी असफलता पर ज़ोर ज़ोर से रोने लगा । मैंने अपना इस्तीफा लिख लिया था ।
मेरे आत्म सम्मान को ज़बरदस्त ठेस पहुंची थी और मुझे लगा कि मैं हंसी का पात्र बन जाउंगा। फोन किया तो पूना के मेरे सबसे पक्के दोस्त अशोक कुमार ने मुझे समझाया कि तुम में काम करने का जबरदस्त जज्बा है और तकनीकी ज्ञान भी भरपूर हैं, परन्तु सफलता के लिए तुम्हे अनुभव का सम्मान भी करना पडेग़ा। बात मेरी समझ आ गई। मैनें सभी लेबर के सामने बाबु रोकड़े को बुलाकर उनका पैर पकड़ लिया और रोते हुए उनसे कहा कि मुझे क्षमा करें। वह बोला, आपने मेरे साथ क्या गलत किया है जो क्षमा मांग रहे है ? बल्कि मैं आपके इतनी लगन से काम करते देख यह जरूर कह सकता हूं कि एक दिन आप बहुत बडे साहब बनेगें। मैंने रोते रोते उनसे कहा कि आप या तो मुझे यह काम सिखायेगें या मै नौकरी छोड़कर जा रहा हूं। उसने मुझे गले से लगा लिया और कहा कि मैं आप जैसे ही व्यक्ति से अपना अनुभव बांटना चाहता था। कुछ ही घंटों में उन्होंने क्रेन इरेक्शन की त्रुटि दूर करवा दी ।
उसने, मुझे साइट पर ध्यान देने लायक छोटी बड़ी बातें सिखाई । जिसमें लेबर हैंडलिंग से लेकर , समय पर काम को खत्म करने की तैयारी , प्री कास्ट प्रोडक्शन व क्रेन इरेक्शन जैसी तकनीकि कामों की बारीकी इत्यादि थीं . अगले चार महीने में उनके साथ मैंने कम्पनी के प्रोडक्शन के रिकार्ड 7 बार तोड़े। मुझे 3 बार इन्क्रीमेंट भी मिला और पुरस्कृत होकर प्रोजेक्ट मैनेजर के रूप में, मुझे दूसरे नए प्रोजेक्ट को शुरू करने के लिये नागपुर भेजा गया। बाबू रोकड़े को मेरे साथ ले जाने की इजाजत कंपनी ने नही दी। कभी कभार उनकी खबर मिलती रहती और मै भी उन्हें खबर भेजता रहता था। 6 माह बाद पता चला कि वे दुनिया में नही रहें। आज भी जब मैं उनको याद करता हूं तो मेरी आंखें भर आती हैं. मेरे गुरुओं में से एक बाबू रोकड़े आपने मुझे बहुत कुछ सिखाया और सबसे महत्वपूर्ण बात सिखाई , अनुभव को प्रणाम करना .
इंजी मधुर चितलांग्या,प्रधान संपादक , दैनिक पूरब टाइम्स