बनासकांठा: गुजरात के बनासकांठा जिले के सुईगाम तालुका स्थित ममाणा गांव एक अनोखे उदाहरण के रूप में उभर रहा है, जहां 1961 से अब तक कोई भी पंचायत चुनाव नहीं हुए हैं, फिर भी गांव में विकास की रोशनी और शांति कायम है। यहां के लोग भाईचारे और सहमति से सरपंच का चयन करते हैं, जिससे आपसी संघर्ष और राजनीतिक मतभेद की कोई गुंजाइश नहीं रहती।
समरस ग्राम पंचायत योजना का प्रभाव
ममाणा गांव समरस ग्राम पंचायत योजना के अंतर्गत आता है, जिसका उद्देश्य चुनाव में होने वाले विवादों से बचाव और गांव के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करना है। यहां के लोग आपसी सहमति से प्रतिनिधि चुनते हैं, जिससे लोकतंत्र की एक अनूठी मिसाल पेश होती है।
आगे पढ़ेइतिहास से जुड़ी ममाणा की कहानी
गांव की स्थापना 1,100 साल पहले सिद्धराज सोलंकी के शासनकाल में हुई थी। स्थानीय इतिहास के अनुसार, राजा ने आनंदजी और कर्मणजी को गांव के प्रशासन की जिम्मेदारी दी थी, और तब से ही यह परंपरा कायम है।
कैसे चुना जाता है सरपंच?
हर पांच साल बाद पंचायत कार्यकाल समाप्त होने पर, गांव के अग्रणी और बुजुर्ग मिलकर नए सरपंच का चयन करते हैं। फिलहाल गढ़वी परिवार के सदस्य सरपंच के रूप में कार्यरत हैं। उनका कहना है कि बिना चुनाव के भाईचारा और एकता बनी रहती है, जिससे विकास योजनाओं में कोई बाधा नहीं आती।
गांव में सभी आधुनिक सुविधाएं मौजूद
ममाणा गांव की आबादी 2,500 से अधिक है और यहां 1,100 मतदाता हैं। गांव में पानी, सीवरेज, आरसीसी रोड, स्ट्रीट लाइट, गार्डन, बालवाटिका, और शैक्षिक संस्थान मौजूद हैं। किसी भी समस्या का समाधान आपसी समझौते और संवाद के माध्यम से किया जाता है।
विविध समाज, फिर भी शांति का माहौल
गांव में प्रजापति, गढ़वी, ठाकोर, वाल्मीकि, पंचाल और सुथार समुदायों के लोग रहते हैं, लेकिन कभी भी जातीय या राजनीतिक संघर्ष नहीं हुआ। अब तक गांव में एक भी FIR दर्ज नहीं हुई, जो इसकी शांति और सौहार्दपूर्ण माहौल का प्रमाण है।
ममाणा गांव का यह मॉडल देशभर के अन्य गांवों के लिए प्रेरणादायक साबित हो सकता है, जहां चुनावी संघर्ष के बजाय सहयोग और समरसता से विकास की राह अपनाई जाए।
show less