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Thursday, November 21, 2024

वो ख़्वाबों के दिन (भाग – 11)

वो ख्वाबों के दिन 
( पिछले 10 अंकों में आपने पढ़ा : मन में अनेक अरमान लिए एक गांव से शहर पढ़ने आये एक युवा के दिल की धड़कन बढ़ा देती है , एक दिन अचानक , एक बंगले की पहली मंज़िल की खिड़की . वह देखता है वहां पर एक नाज़ुक व बेहद खूबसूरत युवती जोकि उसकी कल्पना से भी ज़्यादा सुंदर होती है . फिर एक दिन उसे महसूस होता है कि उस खिड़की के सैंकड़ों चक्कर बिलकुल बेअसर नहीं हैं . उस युवती के इशारों इशारों में जवाब और आगे मस्ती से भरी फोन पर शुरू हो चुकी बातचीत ने एक खूबसूरत आकार लेना शुरू कर दिया . आगे , पढें आज पहली मुलाकात ने कौन सी नई शुरुआत हुई ?  )

एक प्रेम कहानी अधूरी सी ….

(पिछले रविवार से आगे की दास्तान – 11 )

झटपट उसने मुझे पार्क के दूसरे हिस्से में चलने कहा . जाते ही वह मेरा हाथ पकड़कर एक झाड़ के नीचे बैठ गयी. मैं रोमांचित हो उठा . कुछ देर चुपचाप हाथों में हाथ रहा,  फिर हाथ को झुलाते हुए बोली , सुनो आप . मैंने आंखों के इशारे से उससे कहा , आगे कहो. अब तक हमारे हाथों की कंपकंपाहट गई नहीं थी . उसके गाल और मेरे कान लाल हो चुके थे .

वह बोली , मुझे आपने बेहद आकर्षित किया. मुझे आपके साथ चोरी-छुपे इशारे बाज़ी बेहद अच्छी लगी. मैं आपसे दोस्ती करना चाहती हूं . मैंने कहा, ‘मलिका ‘तुम बेहद खूबसूरत हो . मुझे बिलकुल राजकुमारी की तरह लगती हो .वह शरमाते हुए बोली, आप मुझे पटाने की कोशिश कर रहे हैं. मेरी हिम्मत बढ़ गयी, मैंने पूछा , और तुम ? वह फिर मुस्कुरा कर बोली , मैं पट गयी हूं इसीलिए तो मिलने आई हूं. इस बात पर दोनो खिलखिलाकर हंस दिये .

तू आ पास पहलू में मेरे , रूह में मेरी दाखिल हो जा
बनकर सांसे मेरे दिल की, धड़कन में तू शामिल हो जा

एक औपचारिकता की दीवार गिर गई पर दोनों के दिल ने ज़ोरों से धड़कना नहीं छोड़ा था . दोनो के हाथ पसीना पसीना हो रहे थे पर कोई भी हाथ छोड़ने – छुड़ाने को तैयार नहीं था . फिर अचानक मैं बोल उठा , मलिका , तुमने मुझे बुलाया और तुम ही गुमसुम हो रही हो ? कोई तो बात है ? वह गंभीर होकर बोली, मेरा परिवार बेहद मॉडर्न है  .मेरे भाई – भाभी ने लव मैर्रिज की है . मैं आपको अपने घर भी मिलने बुला सकती हूं, उन्हें अपने बॉय फ्रेंड की तरह इंट्रोड्यूस भी कर सकती हूं , उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी . पर मुझे आपसे इस तरह छुपकर दोस्ती करना बेहद रोमांचक लग रहा है. आप मुझे एक दोस्त से भी ज़्यादा अच्छे लगते हैं परन्तु अभी मैं दोस्ती से ज़्यादा किसी भी रिश्ते में नहीं पड़ना चाहती , प्लीज़ . मेरा ग्रैजुएशन खत्म हो गया और मुझे इस साल ट्रेनिंग के लिये अहमदाबाद जाना था . उसके बाद , अगले साल आगे पढ़ाई के लिये , विदेश जाना है . इसी बीच आपकी उपस्थिति से दिल के तार झनझना उठे . मैं सोचती हूं कि मैंने क्यों कदम आगे बढ़ाया ? आपके साथ मुझे इस तरह का खेल नहीं खेलना था . यह कहते हुए उसकी आंखें डबडबा गई . मैंने कहा , ठीक है ,  जितना साथ है उतना ही सही . पर इत्मिनान से इस रोमांच को महसूस तो कर लेते हैं . फिर मज़े लेते हुए बोल उठा , वैसे भी लंगूर को इतनी खूबसूरत हूर कहां मिलती है ? वह ज़ोर से हंसी और बोली , और वहां दोस्तों से बोलते होगे कि दिल लगा गधी से तो परी क्या चीज़ है , है न ! हम दोनों इस मज़ाक़ पर हंस पड़े . मैं बोला , सीरियसली , मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा है कि ज़िंदगी में इतने खूबसूरत दिल धड़काने वाले लमहे आ सकते हैं . वह भी बिंदास होकर बोली , सचमुच  , दिल के धड़कने का यह अन्दाज़ अद्भुत है . इसे मैं महसूस करना चाहती थी . फिर अचानक बोली , क्या आप मुझे छुपकर किसी तरह से लव लेटर पहुंचायेंगे ?

दिल में आया ये ख्याल अभी ,एक ख़त तेरे नाम  करे
ख्वाहिशो की फेहरिस्त में , एक ख्वाब तेरे नाम करे

मैंने रुंआसा होते हुए पूछा , आज मिले हैं , आज ही बिछड़ने की बात कर रही हो और साथ ही साथ, आगे बढ़ाने की बात भी . वह मासूमियत से बोली , वही तो . मैं आज आपसे मिलकर , अंतिम विदाई लेना चाहती थी . पर अब स्पष्टता से प्यार व दोस्ती दोनों की तीव्रता को महसूस करना चाहती हूं . आगे जो भी होगा , मंज़ुर-ए-खुदा होगा . इतना कहकर उसने मेरे कंधे पर अपना सिर रख दिया . वो बेहद मासूमियत से अपनी बात कह गई . उसकी आंखें डबडबा आईं , मेरी सांसे अटक सी गई . कितने ख्वाब बुनने लगा था पर उनको अंजाम तक पहुंचाने की उम्मीद एकदम धुमिल थी . पर यह स्पष्ट था कि जब तक साथ हैं , खूबसूरत ख्वाबों की दुनिया में मज़े लेंगे. मैं बोल पड़ा , देखो पूरी रिस्क लेकर मैं प्रेम पत्र तुम तक पहुंचा दूंगा पर मेरी भावना की तीव्रता तुमको बहा देगी . अब वह मेरा हाथ दबाते हुए बोली , वही तो चाहती हूं , मेरे ध्रुव .

भोली–भाली सूरत है और हो बेहद खूबसूरत इंसान..
दिल की मासूम है , मग़र चितचोर है मुस्कान..
चंचल सी आँखें तेरी, मगर हैं थोड़ी सी शैतान..
पर तुम मेरी मलिका हो , तुममें बसती मेरी जान ..

( अगले हफ्ते आगे का किस्सा ) 

इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक ,
दैनिक पूरब टाइम्स

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