नमस्कार ,पिछले कई हफ्तों में मैंने मज़ेदार शायरिया , जोश भर देने वाली व मंच संचालन के वक़्त बोली जा
सकने वाली शायरियों के संकलन को आपके सामने प्रस्तुत किया था . इस बार पेश ए खिदमत है दिल के जज़्बों को इज़हार करती कुछ मिली जुली शायरियां
मेरे बारे में कोई राय न बनाना ग़ालिब
मेरे बारे में कोई राय न बनाना ग़ालिब
मेरा वक़्त बदलेगा और तेरी राय भी
आज मुझ को बहुत बुरा कह कर,
आज मुझ को बहुत बुरा कह कर,
आप ने नाम तो लिया मेरा
मुहब्बत का कभी इज़हार करना ही नहीं आया,
मुहब्बत का कभी इज़हार करना ही नहीं आया,
मेरी कश्ती को दरिया पार करना ही नहीं आया.
ये कहना था उन से मोहब्बत है मुझ को
ये कहना था उन से मोहब्बत है मुझ को
ये कहने में मुझ को ज़माने लगे हैं
एक वक़्त था कि इज़हार -ऐ-मोहब्बत के हमें शब्द नहीं मिलते थे
एक वक़्त था कि इज़हार -ऐ-मोहब्बत के हमें शब्द नहीं मिलते थे
मेहरबानी तेरी बेवफ़ाई की हमको शायर बना दिया
अच्छा करते हैं वो लोग जो मोहब्बत का इज़हार नहीं करते,
अच्छा करते हैं वो लोग जो मोहब्बत का इज़हार नहीं करते,
ख़ामोशी से मर जाते हैं मगर किसी को बदनाम नहीं करते
इज़हार कर देना वरना,
इज़हार कर देना वरना,
एक ख़ामोशी उम्रभर का इंतजार बन जाती है
कर दिया “हमनें” भीं “इज़हार-ए-मोहब्बत” फोन पर
कर दिया “हमनें” भीं “इज़हार-ए-मोहब्बत” फोन पर
लाख” रूपये की बात थी, “एक” रूपये में हो गयी
बडी शिद्धत के साथ प्यार का इज़हार करने चले थे
बडी शिद्धत के साथ प्यार का इज़हार करने चले थे
पर उसने मुझ से पहले ऐसा करके , ज़ुबां पर ताला लगा दिया
एक इज़हार-ए-मोहब्बत ही बस, होता नहीं हमसे,
एक इज़हार-ए-मोहब्बत ही बस, होता नहीं हमसे,
हमसा माहिर जहाँ में वरना और कौन है…
ज़ख़्म इतने गहरे हैं इज़हार क्या करें
हम खुद निशाना बन गए वार क्या करें
ज़ख़्म इतने गहरे हैं इज़हार क्या करें
हम खुद निशाना बन गए वार क्या करें
मर गए हम मगर खुली रही ये आँखें
मर गए हम मगर खुली रही ये आँखें
अब इससे ज्यादा उनका इंतज़ार क्या करें
साथियों , अगले हफ्ते फिर किसी अलग मिजाज़ पर शायरी का संकलन प्रस्तुत करुंगा . नमस्कार …
इंजी. मधुर चितलांग्या , प्रधान संपादक
दैनिक पूरब टाइम्स