नमस्कार, पिछले हफ्तों में मैंने कई शेर ओ शायरी के संकलन आपके सामने प्रस्तुत किये. साहिर, खुमार बाराबंकवी , राहत इन्दौरी, गुलज़ार इत्यादि . आज हिंदी सिनेमा के गीतों को अपनी कलम से जादुई अंदाज़ देने वाले जावेद अख्तर के ज़ज़्बातों को लेकर आया हूं । ग़जलों को एक नया और आसान रूप देने में जावेद साहब का बहुत बड़ा योगदान है। वे कवि और हिन्दी फिल्मों के गीतकार और पटकथा लेखक हैं। वे सीता और गीता, ज़ंजीर, दीवार और शोले की कहानी, पटकथा और संवाद लिखने के लिये प्रसिद्ध है। अपने कैरियर की शुरुआत में ऐसा वो सलीम खान के साथ सलीम-जावेद की जोड़ी के रूप में करते थे। इसके बाद उन्होंने गीत लिखना जारी किया जिसमें तेज़ाब, 1942: अ लव स्टोरी, बॉर्डर और लगान शामिल हैं। उन्हें कई फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार, राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार और पद्म भूषण प्राप्त हुए व राज्य सभा के सांसद भी रहे । जिंदगी को जावेद अख्तर ने करीब से देखा है। उनके गीत और गजलें शायद यहीं कर रही है। शायराना अंदाज उनको पिता जां निसार अख्तर से मिला। साहिर लुधियानवी का साथ और गुलजार की दोस्ती ने जावेद अख्तर को तराशा। जावेद साहब का अन्दाज़े बयां सबसे मुख्तलिफ है और बहुधा वह एक फिलॉसोफी लिये हुए होता है . उनके चन्द शेर पेश ए खिदमत हैं
क्यूँ डरें ,जिंदगी में जाने क्या होगा?
कुछ ना होगा, तो तजुर्बा तो होगा
सँवरना ही है तो किसी की नजरों में संवरिये,
आईने में खुद का मिजाज नहीं पूछा करते
उनकी चिरागो में तेल ही कम था
क्यों गिला फिर हम हवा से करे
हमको उठना तो मुंह अंधेरे था
लेकिन एक ख्वाब हमको घेरे था
जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया
उम्र भर दोहराएंगे ऐसी कहानी दे गया
उस से मैं कुछ पा सकू ऐसी कहाँ उम्मीद थी
ग़म भी शायद बराए मेहरबानी दे गया
हमारे दिल में अब तल्ख़ी नहीं है
मगर वो बात पहले सी नहीं है
कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी
डर हम को भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से
लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा
मैं पा सका न कभी इस ख़लिश से छुटकारा
वो मुझ से जीत भी सकता था जाने क्यूँ हारा
याद उसे भी एक अधूरा अफ़्साना तो होगा
कल रस्ते में उस ने हम को पहचाना तो होगा
कोई शिकवा न ग़म न कोई याद
बैठे बैठे बस आँख भर आई
हर खुशी में कोई कमी-सी है
हंसती आंखों में भी नमी-सी है
ऊँची इमारतों से मकाँ मेरा घिर गया
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए
मोहब्बत को आशिकाना अंदाज में पेश करने में जावेद अख्तर हमेशा आगे रहे। जावेद अख्तर अपनी गजलों में इश्क करने के बाद किसी तरह के पश्चाताप का जिक्र नहीं करते हैं। यह उन्हें जिंदादिल शायर का दर्जा देता है।
मुझे मायूस भी करती नहीं है
यही आदत तिरी अच्छी नहीं है
इक मोहब्बत की ये तस्वीर है दो रंगों में
शौक़ सब मेरा है और सारी हया उस की है
मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है
मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ
कुछ कमी अपनी वफ़ाओं में भी थी
तुम से क्या कहते कि तुमने क्या किया
किसी को क्या बताये की कितने मजबूर हू ,
चाहा था सिर्फ एक तुमको और तुमसे ही दूर हू .
काश कोई हम पर भी इतना प्यार जताती,
पीछे से आकर वो हमारी आँखों को छुपाती,
हम पूछते की कौन हो आप …??
और वो मुस्करा कर खुदको हमारी जान बताती.
यूं तो जावेद अख्तर के एक से एक उम्दा शेर हैं पर आज बस इतना ही . अगले हफ्ते फिर किसी नये अन्दाज़ के साथ आपके सामने उपस्थित होउंगा …..
इंजी .मधुर चितलांग्या ,
संपादक, दैनिक पूरब टाइम्स