नमस्कार साथियों . अभी तक मैंने साहिर लुधियानवी, गुलज़ार, दुष्यंत कुमार , राहत इंदौरी , गुलज़ार , जावेद अख्तर के बारे में व उनको शोहरत की बुलंदियों में पहुंचाने वाली उनकी कलमकारी से रूबरू करवाया था. आज , वर्तमान के सबसे चहेते कलमकार कुमार विश्वास की रचनाओं से रूबरू करवाउंगा .कुमार विश्वास ,हिन्दी कवि, वक्ता और सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ता हैं। वे आम आदमी पार्टी के नेता रह चुके हैं। उनका मूल नाम विश्वास कुमार शर्मा है। हिंदी को भारत से विश्व तक पुनः स्थापित करने वाले कुमार विश्वास के कविता के मंचन, वाचन, गायन के साथ साथ वाक चातुर्य प्रतिभा के भी धनी हैं। मंच संचालन, गायन, काव्य वाचन, पाठन, लेखन आदि सब विधाओं में निपुण कुमार विश्वास हिंदी के प्राध्यापक भी रह चुके हैं। वे युवाओं के अत्यन्त प्रिय कवि हैं। उनकी दो प्रसिद्ध रचनाएं प्रस्तुत हैं . ..
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है !
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !!
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है !
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !!
मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है !
कभी कबिरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है !!
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं !
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है !!
समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नही सकता !
यह आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नही सकता !!
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले !
जो मेरा हो नही पाया, वो तेरा हो नही सकता !!
भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूबकर सुनते थे सब किस्सा मुहब्बत का
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा
कुमार विश्वास अपनी कविताएं तरन्नुम के साथ गाकर पढ़ते रहे हैं . उनके बोलों में जोश है . आक्रोश है तो प्रेम की बेहद तीव्रता है जोकि आजकल के युवाओं के दिल पर उतर जाती हैं ….
जब भी मुँह ढंक लेता हूँ ,तेरे जुल्फों की छाँव में
कितने गीत उतर आते हैं ,मेरे मन के गाँव में
जब भी मुँह ढंक लेता हूँ ,तेरे जुल्फों की छाँव में
कितने गीत उतर आते हैं ,मेरे मन के गाँव में
एक गीत पलकों पर लिखना ,एक गीत होंठों पर लिखना
यानि सारी गीत हृदय की ,मीठी-सी चोटों पर लिखना
एक गीत पलकों पर लिखना ,एक गीत होंठों पर लिखना
यानि सारी गीत हृदय की ,मीठी-सी चोटों पर लिखना
जैसे चुभ जाता है कोई काँटा नंगे पांव में
ऐसे गीत उतर आते हैं, मेरे मन के गाँव में
जब भी मुँह ढंक लेता हूँ ,तेरे जुल्फों की छाँव में
कितने गीत उतर आते हैं,मेरे मन के गाँव में
अगले हफ्ते फिर किसी अलग अन्दाज़ व मिजाज़ की रचना आपके सामने लेकर हाज़िर होउंगा . नमस्कार ….
इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक , दैनिक पूरब टाइम्स