नमस्कार साथियों, आज हम आपको एक ऐसे उम्दा शायर से रूबरू करवाने जा रहे हैं, जिनके लेखन में कभी गांव की सौंधी मिट्टी की खुश्बू होती है तो कभी दिखते हैं जीवन दर्शन के अनूठे फलसफे . ये अद्भुत व्यक्तित्व हैं गुलज़ार. गुलज़ार का असली नाम् सम्पूर्ण सिंह कालरा हैं. हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार के अतिरिक्त वे एक कवि, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक नाटककार तथा प्रसिद्धशायर हैं. उनकी रचनाएँ मुख्यतः हिन्दी, उर्दू तथा पंजाबी में हैं, परन्तु ब्रज भाषा, खड़ी बोली, मारवाड़ी और हरियाणवी में भी इन्होंने रचनाएं कीं. गुलज़ार को वर्ष २००२ में सहित्य अकादमी पुरस्कार और वर्ष २००४ में भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाले तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है. वर्ष २००९ में डैनी बॉयल निर्देशित फ़िल्म” स्लमडॉग मिलिनेयर” में उनके द्वारा लिखे गीत “जय हो” के लिये उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीत का ऑस्कर पुरस्कार मिल चुका है. इसी गीत के लिये उन्हें ग्रैमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है. 2013 में उन्हें फिल्म जगत के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार दादा साहब फाल्के अवार्ड से भी नवाज़ा गया .पेश-ए- खिदमत हैं , फिल्मी गीतों – शायरियों से अलग उनके कुछ अशयार …
शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
आप के बाद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
वो उम्र कम कर रहा था मेरी
मैं साल अपने बढ़ा रहा था
कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था
आज की दास्ताँ हमारी है
कोई अटका हुआ है पल शायद
वक़्त में पड़ गया है बल शायद
कुछ अलग करना हो तो भीड़ से हट के चलिए,
भीड़ साहस तो देती हैं मगर पहचान छिन लेती हैं
इतना क्यों सिखाई जा रही हो जिंदगी
हमें कौन से सदिया गुजारनी है यहां
मैं वो क्यों बनु जो तुम्हें चाहिए
तुम्हें वो कबूल क्यों नहीं , जो मैं हूं
बहुत छाले हैं उसके पैरों में
कमबख्त उसूलो पर चल होगा
मैं दिया हूँ
मेरी दुश्मनी तो सिर्फ अँधेरे से हैं
हवा तो बेवजह ही मेरे खिलाफ हैं
बहुत अंदर तक जला देती हैं,
वो शिकायते जो बया नहीं होती
हम तो अब याद भी नहीं करते,
आप को हिचकी लग गई कैसे?
एक सपने के टूटकर चकनाचूर हो जाने के बाद
दूसरा सपना देखने के हौसले का नाम जिंदगी हैं
तकलीफ़ ख़ुद की कम हो गयी,
जब अपनों से उम्मीद कम हो गईं
कौन कहता हैं कि हम झूठ नहीं बोलते
एक बार खैरियत तो पूछ के देखियें
शायर बनना बहुत आसान हैं
बस एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल डिग्री चाहिए
कैसे करें हम ख़ुद को तेरे प्यार के काबिल,
जब हम बदलते हैं, तो तुम शर्ते बदल देते हो
आदतन तुम ने कर दिए वादे,
आदतन हम ने एतिबार किया
किसी पर मर जाने से होती हैं मोहब्बत,
इश्क जिंदा लोगों के बस का नहीं
वक्त रहता नहीं कही भी टिक कर,
आदत इसकी भी इंसान जैसी हैं
बेहिसाब हसरते ना पालिये
जो मिला हैं उसे सम्भालिये
आइना देख कर तसल्ली हुई,
हम को इस घर में जानता है कोई
लगता है ज़िंदगी आज कुछ खफा है
चलिये छोड़िये, कौन सी पहली दफा है
गुलज़ार साहब के इतने सारे , एक से एक फिल्मी गीत हैं , नज़्में हैं, गज़लें हैं, शायरियां हैं . उन सब पर तसल्ली से फिर आपकी खिदमत में आउंगा . नमस्कार ..
इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक
दैनिक पूरब टाइम्स
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