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Friday, December 5, 2025
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शायरी कलेक्शन 9 – दिल के जज़्बों को इज़हार करती शायरी

नमस्कार , पिछले कई हफ्तों में मैंने मज़ेदार शायरिया , जोश भर देने वाली व मंच संचालन के वक़्त बोली जा सकने वाली शायरियों के संकलन को आपके सामने प्रस्तुत किया था . फिर दोस्ती पर शायरियां जो कि दिल के तारों कोझनझना दें. इस बार अद्भुत शायर , मंच से श्रोताओं का दिल जीत लेने वाले व मेरे फेवरेट , जनाअ खुमार बाराबांकवी की दिल के जज़्बों को इज़हार करती कुछ शायरियां पेश ए खिदमत हैं

दुनिया के ज़ोर प्यार के दिन याद आ गये
दुनिया के ज़ोर प्यार के दिन याद आ गये
दो बाज़ुओ की हार के दिन याद आ गये
वादे का उनके आज खयाल आ गया मुझे
वादे का उनके आज खयाल आ गया मुझे
शक और ऐतबार के दिन याद आ गये

ये मिसरा नहीं है वज़ीफा मेरा है
ये मिसरा नहीं है वज़ीफा मेरा है
खुदा है मुहब्बत, मुहब्बत खुदा है
कहूँ किस तरह मैं कि वो बेवफा है
कहूँ किस तरह मैं कि वो बेवफा है
मुझे उसकी मजबूरियों का पता है

न हारा है इश्क और न दुनिया थकी है
हारा है इश्क और न दुनिया थकी है
दिया जल रहा है हवा चल रही है
सुकू ही सुकू है खुशी ही खुशी है
सुकू ही सुकू है खुशी ही खुशी है
तेरा गम सलामत मुझे क्या कमी है

वही फिर मुझे याद आने लगे हैं
वही फिर मुझे याद आने लगे हैं
जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं
वो हैं पास और याद आने लगे हैं
वो हैं पास और याद आने लगे हैं
मोहब्बत के होश अब ठिकाने लगे हैं

सुना है हमें वो भुलाने लगे हैं
सुना है हमें वो भुलाने लगे हैं
तो क्या हम उन्हें याद आने लगे हैं
ये कहना था उन से मोहब्बत है मुझ को
ये कहना था उन से मोहब्बत है मुझ को
ये कहने में मुझ को ज़माने लगे हैं

झुँझलाए हैं लजाए हैं फिर मुस्कुराए हैं
झुँझलाए हैं लजाए हैं फिर मुस्कुराए हैं
किस एहतिमाम से उन्हें हम याद आए हैं
अब जाके आह करने के आदाब आए है
अब जाके आह करने के आदाब आए है
दुनिया समझ रही है कि हम मुस्कुराए है

एक पल में एक सदी का मज़ा हमसे पूछिए
एक पल में एक सदी का मज़ा हमसे पूछिए
दो दिन की ज़िन्दगी का मज़ा हमसे पूछिए
भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए
वो जान ही गये कि हमे उनसे प्यार है
वो जान ही गये कि हमे उनसे प्यार है
आँखो की मुखबिरी का मज़ा हमसे पूछिए

ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत नहीं रही
ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत नहीं रही
जज़्बात में वो पहली सी शिद्दत नहीं रही
सर में वो इंतज़ार का सौदा नहीं रहा
सर में वो इंतज़ार का सौदा नहीं रहा
दिल पर वो धड़कनो की हुकूमत नहीं रहीं

साथियों , अगले हफ्ते फिर किसी अलग मिजाज़ पर शायरी का संकलन प्रस्तुत करुंगा . नमस्कार …

इंजी. मधुर चितलांग्या , प्रधान संपादक
दैनिक पूरब टाइम्स

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