जब भी चुनाव होते हैं तो विपक्ष की पार्टी, सत्ताधारी पार्टी को घूसखोरी और भ्रष्टाचार के लिये जी भर के कोसती है और सत्ता में आने के कुछ अरसे बाद वही पार्टी अपनी उस बात को भूल जाती है . अब आम जनता सहित पक्ष विपक्ष के राजनेता और अधिकारी यह जान गये है कि घूस यानी रिश्वतखोरी को बंद कर पाना असंभव है.
सुनने में आया है कि अब घूसखोरी में भी भ्रष्टाचार होने लगा है . इस भ्रष्टाचार को रोकने के लिये प्रदेश के एक आला अधिकारी ने राज्य सरकार को सुझाव दिया है कि रिश्वत का सिस्टम बनाकर उसे कानूनी रूप दे दिया जाये, इससे आगे भ्रष्टाचार और नहीं बढ़ेगा. बहुत से विभाग ऐसे हैं जहां घूस के प्रतिशत तय है परंतु नये अधिकारी-कर्मचारी व राजनेता आने पर ये बदल जाते हैं. कई बार ठेकेदार/ सप्लायर/ अपनी सुविधा अनुसार इसे बदलने का प्रयास करते हैं. इसके अलावा अधिकारी एवं राजनेताओं पर पकड़े जाने का डर सदा रहता है. बहुत बार डीलिंग साफ-सुथरी व स्पश्ट नहीं होने पर काम की गति भी प्रभावित होती है.
सूत्रों के अनुसार इस तरह की सबसे ज़्यादा लाल फीता शाही जल संसाधन विभाग में चलती है , जहां प्रमुख अभियंता से निचले स्तर का अधिकारी , ठेकेदारों से अतिरिक्त सहयोग करने के नाम से अलग से डिमांड रखता है . इसके अलावा कभी भी किसी भी गैर सरकारी कार्य के लिये अतिरिक्त खर्च करवाते रहता है . इसीलिये शुरुआत के लिये यह विभाग , प्राथमिकता सूचि में सबसे ऊपर है .
इस हेतु , भ्रष्टाचार के कारण निलंबित हुये अनेक अधिकारियों , सेटिंग ना हो सकने से पेनाल्टी से ना बच पाने वाले ठेकेदारों , अपना हिस्सा उच्चाधिकारियों के द्वारा हड़प किये जाने से परेशान अधिकारियों समेत पैसा ना बना पाने की कुंठा से ग्रस्त राजनेताओं से सुझाव मांगे जायेंगे . बताया यह जा रहा है यदि इस सिस्टम को कानूनी रूप से लागू कर दिया गया तो न खाउंगा और ना खाने दूंगा भी अपने आप लागू हो जायेगा .
इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक
दैनिक पूरब टाइम्स