जब कोई व्यक्ति जो संज्ञेय और अजमानतीय अपराध के आरोप में न्यायिक अभिरक्षा में रखा जाने के कारण जेल में बंद हो और उसकी नियमित जमानत अर्जी पर सुनवाई और आदेश होना शेष हो या फिर उसे निरस्त कर दिया गया हो वैसी स्थिति में शॉर्ट टर्म जमानत की स्थिति सामने आती है।
उक्त परिस्थितियों में जब भी कोई आकस्मिक स्थिति या अवसर उत्पन्न होता है जिसमें आरोपी की भागीदारी आवश्यक समझी जाए तो वह सक्षम न्यायालय के समक्ष केवल उस आकस्मिक कार्य को करने या अवसर पर उपस्थित होने के लिए आवेदन प्रस्तुत कर सकता है और सक्षम न्यायालय ऐसे आवेदन पर कुछ निश्चित दिनों के लिए अभियुक्त को जमानत पर छोड़े जाने का आदेश पारित कर सकती है। इसे शॉर्ट टर्म बेल या अल्पावधि जमानत कहा जाता है। इसे कुछ लोग पैरोल भी कहते हैं।
पैरोल क्या होती है?
पैरोल का अर्थ है, किसी अपराधी द्वारा खुद के द्वारा किये गए किसी गुनाह की सजा का जेल में एक बड़ा भाग काटने के बाद, अच्छे आचरण की वजह उसे जेल से अस्थायी रूप से लिए मुक्त किया जाना। यह समय एक निश्चित अवधि के लिए होता है, जिसे कुछ समय के लिए कोर्ट में एक एप्लीकेशन दे कर इसकी अवधि को आगे और लम्बा भी किया जा सकता है।
पैरोल किसी भी तरह के अपराधी को मिल सकती है, अगर कोर्ट में केस चल रहा है, तो सिर्फ वह कोर्ट में अपील करने पर ऊपर की कोर्ट ही पैरोल दे सकती है, लेकिन अगर अभियुकत को सजा मिल चुकि है, तो प्रशासन व जेल अध्यक्ष भी पेरोल दे सकते हैं। पैरोल मिलना जितना कठिन है, उससे कहीं ज्यादा कठिन है, पैरोल और इसके नियम व शर्तों का पालन करना।
• ये सारी योग्यताएं एक आम भारतीय नागरिक के लिए होती हैं। लेकिन गोद लेने की प्रक्रिया को कई श्रेणियों में बांटा गया है। मसलन, एनआरआई, इंटर-स्टेट, सौतेले माता-पिता या फिर रिश्तेदारों द्वारा गोद लेने के लिए अलग-अलग नियम हैं।
पैरोल कितने प्रकार की होती है?
भारत की न्याय व्यवस्था में मुख्य रूप से दो प्रकार की पैरोल का वर्णन किया गया है
1. कस्टडी पैरोल
2. रेगुलर पैरोल
कस्टडी पैरोल क्या होती है?
कस्टडी पैरोल वह होती है, जिसके अंतर्गत दोषी अथवा अपराधी को किसी विशेष स्थिति में जेल से बाहर लाया जाता है, और उस समय वह पुलिस कस्टडी में ही रहता है। पुलिस का सुरक्षा घेरा उसके साथ होता है, जिससे कि वह फरार ना हो सकेI इस प्रकार की पैरोल अपराधी को तब दी जाती है, जब किसी ख़ास रिश्तेदार की उसके परिवार में मौत हो जाती है, या फिर उसके परिवार में किसी विशेष व्यक्ति की शादी होती है। उसके परिवार में यदि कोई बीमार होता है, या फिर कोई भी ऐसी परिस्थिति जो कि अपराधी के लिए बहुत आवश्यक है, तो उस अपराधी को पैरोल पर कुछ घंटों के लिए बाहर लाया जाता हैI कस्टडी पैरोल अधिकतम 6 घंटों के लिए होती हैI कस्टडी पैरोल के लिए जेल सुपरिंटेंडेंट के पास आवेदन किया जा सकता है, और यदि कस्टडी पैरोल को जेल सुपरिंटेंडेंट के द्वारा रिजेक्ट कर दिया जाता है, तो कोर्ट के माध्यम से पैरोल के आदेश प्राप्त किये जा सकते हैंI
रेगुलर पैरोल क्या होती है?
रेगुलर पैरोल की स्थिति में वह अपराधी जिसे सजा सुनाई जा चुकी होती है, तो वह रेगुलर पैरोल के लिए आवेदन कर सकता है I इसके लिए आवश्यक है, कि वह अपराधी कम से कम एक साल की सजा जेल में काट चुका हो, और जेल में उस अपराधी का व्यव्हार अच्छा हो, पहले यदि वह जमानत पर रिहा हो चुका है, और उसने रिहा होने पर कोई भी अन्य अपराध ना किया हो I रेगुलर पैरोल एक साल में कम से कम एक महीने के लिए दी जा सकती है I
किन परिस्थितियों में पैरोल के लिए आवेदन को अस्वीकार कर दिया जा सकता है?
पैरोल पर किसी अपराधी को उस परिस्थिति में नहीं छोड़ा जा सकता है, जब यदि अपराधी का व्यव्हार जेल में संतोषजनक ना हो। यदि अपराधी पहले कभी पैरोल पर बाहर आया हो और उसने पैरोल की शर्तों का पालन ना किया होI यदि अपराधी ने बलात्कार के बाद हत्या का अपराध किया हो या फिर देश द्रोह जैसे मामले में उसे सजा हुई हो या फिर अपराधी को किसी प्रकार की आंतकवादी गतिविधि, जैसे अपराध के लिए सजा हुई हो तो पैरोल नहीं दी जाती है। और इसके अलावा यदि अन्य किसी किस्म के देश की सुरक्षा से जुड़े हुए किसी मामले में सजा सुनाई गयी है तो अपराधी को पैरोल पर नहीं छोड़ा जा सकता है।