सुप्रीम कोर्ट ने 9 जनवरी, 2025 को भारतीय रेलवे की बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण भूमिका और इसकी टिकट प्रणाली की शुचिता और स्थिरता को बनाए रखने के महत्व को रेखांकित किया। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ रेलवे टिकट प्रणाली में धोखाधड़ी के दो आरोपियों की दो अलग-अलग अपीलों पर सुनवाई कर रही थी।
कोर्ट ने यह कहा कि भारतीय रेल देश के बुनियादी ढांचे का अहम हिस्सा है, जो सालाना लगभग 673 करोड़ यात्रियों को सेवा प्रदान करता है और देश की अर्थव्यवस्था पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए रेलवे टिकट प्रणाली की शुचिता और स्थिरता को बाधित करने के किसी भी प्रयास को तुरंत रोका जाना चाहिए।
आगे पढ़ेयह अपीलें रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा 143 से संबंधित थीं, जो रेलवे टिकटों के अनधिकृत कारोबार पर जुर्माना लगाने का प्रावधान करती है। पहली अपील में केरल हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें मैथ्यू के. चेरियन के खिलाफ अधिनियम की धारा 143 के तहत शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया गया था। चेरियन पर आरोप था कि उसने आईआरसीटीसी पोर्टल पर फर्जी यूजर आईडी बनाकर अधिकृत एजेंट न होने के बावजूद रेलवे टिकट खरीदे और बेचे। दूसरी अपील में जे. रमेश ने मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें उनके खिलाफ अधिनियम की धारा 143 के तहत आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मैथ्यू, जो रेलवे का अधिकृत एजेंट नहीं था, को रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा 143 के तहत कार्यवाही का सामना करना चाहिए। हालांकि, कोर्ट ने रमेश के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया, क्योंकि रमेश एक अधिकृत एजेंट था और उसके खिलाफ आरोप थे कि उसने कई ‘यूजर आईडी’ के माध्यम से ग्राहकों को ई-टिकट की आपूर्ति की थी।
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