Total Users- 1,043,882

spot_img

Total Users- 1,043,882

Thursday, July 10, 2025
spot_img

राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा को खत्म करने में निभाई थी अहम भूमिका

27 सितंबर को आधुनिक भारत के जनक कहे जाने वाले राजाराम मोहन राय का निधन हुआ था। राजाराम मोहन राय एकेश्वरवाद के एक सशक्त समर्थक थे और उन्होंने रूढ़िवादी हिंदू अनुष्ठानों और मूर्ति पूजा को बचपन से ही त्याग दिया था। जबकि उनके पिता एक कट्टर हिंदू ब्राह्मण थे। धर्म के नाम पर छोटी उम्र से ही राजाराम का अपने पिता से मतभेद होने लगा था। फिर वह कम उम्र में ही घर का त्याग कर हिमालय और तिब्बत की यात्रा पर चले गए। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर राजाराम मोहन राय के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में…

जन्म और शिक्षा
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के राधानगर गांव में 22 मई 1772 को राजा राम मोहन राय का जन्म हुआ था। उन्होंने महज 15 साल की उम्र में संस्कृत, अरबी, बंगाली औऱ फारसी भाषा का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। फिर वह किशोरावस्था में भ्रमण के लिए निकल पड़े। वहीं साल 1809 से 1914 तक उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया। इसके अलावा उन्होंने उपनिषदों और वेदों का भी गहराई से अध्ययन किया।
वहीं राजा राम मोहन राय ने ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी छोड़ दी। फिर खुद को राष्ट्र सेवा में झोंक दिया। उन्होंने देश की आजादी के अलावा दोहरी लड़ाई लड़ी। पहली लड़ाई देश की स्वतंत्रता के लिए और दूसरी लड़ाई अपने देश के नागरिकों से थी। जो अंधविश्वास और कुरीतियों से जकड़े थे। ऐसे में राजा राम मोहन राय ने इन नागरिकों को झझकोरने का काम किया। उन्होंने सती प्रथा, जातिवाद, कर्मकांड, बाल-विवाह और पर्दा प्रथा आदि का विरोध किया। धर्म के प्रचार के लिए अलेक्जेंडर डफ्फ ने उनकी काफी मदद की।

ब्रह्म समाज की स्थापना
बता दें कि साल 1828 में राजाराम मोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना की थी। इसको भारतीय सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों में से एक माना जाता है। वहीं राजा राम मोहन राय को भारतीय पुनर्जागरण का अग्रदूत भी कहा जाता है। भारतीय सामाजिक और धार्मिक पुनर्जागरण के क्षेत्र में राजाराम को विशिष्ट स्थान है। वह जनजागरण और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता तथा बंगाल में नव-जागरण युग के पितामह भी कहे जाते हैं। राजा राम मोहन राय ने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम और पत्रकारिता के कुशल संयोग से दोनों ही क्षेत्रों को गति प्रदान करने का काम किया। उनके आंदोलनों ने पत्रकारिता को चमकाने का काम किया, तो वहीं पत्रकारिता ने मोहन राय के आंदोलनों को सही दिशा दिखाने का कार्य किया।

दूरदर्शी और वैचारिक
राजा राम मोहन राय की शख्सियत दूर‍दर्शिता और वैचारिकता वाली थी। हिंदी के प्रति वह अगाध स्नेह रखते थे। वह रूढ़िवाद और कुरीतियों के घोर विरोधी थे। लेकिन परंपरा, संस्कार और राष्ट्र गौरव उनके दिल के बेहद करीब था।

spot_img

More Topics

शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष में बने किसान,उगा रहे हैं मेथी और मूंग

भारत के शुभांशु शुक्ला इन दिनों अपनी अंतरिक्ष यात्रा...

Vitamin E की कमी के लक्षण और प्रभाव, इसे कैसे करें पूरा

विटामिन E एक महत्वपूर्ण एंटीऑक्सीडेंट है जो हमारे शरीर...

 छत्तीसगढ़ में बौद्ध परंपरा की जड़ें अत्यंत गहरी : मुख्यमंत्री श्री साय

छत्तीसगढ़ में बौद्ध परंपरा की जड़ें अत्यंत गहरी हैं...

क्या प्लान बना रही सरकार,जस्टिस यशवंत वर्मा से छिनेगा जज का पद!

सरकारी आवास में बड़े पैमाने पर कैश मिलने पर...

इसे भी पढ़े