दिल्ली: शुक्रवार को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 10 लाख रुपए से 50 लाख रुपए की राशि देश की सेवा करते हुए शहीद हुए सैनिकों के परिजनों को मिलने वाली अनुदान राशि बढ़ा दी।
मुख्यमंत्री धामी ने शहादत की अवधि को दो साल से बढ़ाकर पांच साल करने का ऐलान किया। शहीदों के आश्रितों को दूसरे कार्यालयों में भी नियुक्ति मिलेगी करगिल ‘शौर्य दिवस’ के उपलक्ष्य में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए धामी ने शहीदों के आश्रितों को अब जिलाधिकारी के पद पर नियुक्त करने की घोषणा भी की।
कार्यालय के अलावा अन्य कार्यालयों में भी नियुक्ति दी जाएगी। उन्होंने कहा, ”शहीदों के आश्रितों को अभी तक जिलाधिकारी कार्यालय में समूह ‘ग’ और ‘घ’ के पद रिक्त होने पर ही नियुक्ति मिलती थी लेकिन अब संबंधित जिलों में स्थित अन्य विभागों में भी उक्त समूह के पदों पर उन्हें नियुक्त किया जाएगा।” प्रदेश में रहने वाले सैनिकों तथा उनके परिवारों के कल्याण के लिए अपना संकल्प व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने अनुदान राशि को लेकर मतभेद समाप्त करने का भी निर्णय लिया है ताकि शहीदों के माता-पिता और पत्नी दोनों को उसका अधिकार मिले। प्रदेश के जवानों की चर्चा के बिना करगिल विजय की गाथा अधूरी: धामी धामी ने कहा कि उनकी सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर लौटने वाले अग्निवीरों के लिए भी सरकारी सेवाओं में आरक्षण की व्यवस्था करने का प्रावधान कर रही है।
उन्होंने कहा कि इस संबंध में जरूरत होने पर अधिनियम भी बनाया जाएगा, जिससे सरकार को प्रशिक्षित और सक्षम सैनिकों की सेवाएं मिल सकें। करगिल युद्ध में उत्तराखंड की भूमिका को याद करते हुए धामी ने कहा कि प्रदेश के जवानों का स्मरण बिना करगिल विजय की गाथा पूरी नहीं होती। उनका कहना था कि यह वीरभूमि इस युद्ध में शहीद हुए हमारे 75 सैनिकों का बलिदान कभी भुला नहीं सकती। मुख्यमंत्री ने इस संबंध में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक साहस और दूरदृष्टि को भी याद किया और कहा कि करगिल का युद्ध ऐसा पहला युद्ध था जहां भारत की सेना ने अपने अदम्य साहस से मैदान में जीत हासिल की, वहीं मेज पर यह युद्ध राजनीतिक नेतृत्व ने भी जीता।