सरदार वल्लभभाई पटेल और बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर, दोनों ही भारत के संविधान निर्माण और सामाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले व्यक्तित्व थे। लेकिन धर्म के आधार पर आरक्षण को लेकर उनके विचार अलग-अलग और स्पष्ट थे।
सरदार वल्लभभाई पटेल का दृष्टिकोण:
- सरदार पटेल धर्म के आधार पर आरक्षण के घोर विरोधी थे। उनका मानना था कि भारत की एकता और अखंडता के लिए जाति व धर्म के आधार पर विभाजन नहीं किया जाना चाहिए।
- उन्होंने मुस्लिम लीग द्वारा धर्म के आधार पर अलग निर्वाचन प्रणाली की मांग का भी विरोध किया था और इसे भारत की एकता के लिए ख़तरनाक बताया था।
- पटेल का मानना था कि आरक्षण केवल पिछड़े वर्गों और समाज के कमजोर तबकों के उत्थान के लिए ही होना चाहिए, न कि धार्मिक आधार पर।
डॉ. भीमराव अंबेडकर का दृष्टिकोण:
- बाबा साहेब अंबेडकर ने भी धर्म के आधार पर आरक्षण का समर्थन नहीं किया।
- वे जातिगत भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ थे और उन्होंने दलितों व पिछड़ों के लिए सामाजिक और शैक्षणिक आधार पर आरक्षण की वकालत की थी।
- हालांकि, उन्होंने अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया, लेकिन यह सामाजिक असमानता को समाप्त करने के लिए था, न कि धार्मिक आधार पर किसी विशेष समुदाय को लाभ देने के लिए।
- उन्होंने पाकिस्तान जाने वाले मुस्लिम समुदाय को आरक्षण देने के विचार का भी विरोध किया था।
निष्कर्ष:
सरदार पटेल और डॉ. अंबेडकर, दोनों ही धर्म के आधार पर आरक्षण के खिलाफ थे। उन्होंने समाज में समानता और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए नीति बनाने पर ज़ोर दिया, लेकिन धार्मिक आधार पर विशेष अधिकार देने का समर्थन नहीं किया।
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