छत्रपति शिवाजी महाराज, भारतीय इतिहास के सबसे महान और प्रभावशाली शासकों में से एक, का जन्म 19 फरवरी 1630 को पुणे जिले के शिवनेरी किले में हुआ था। उनकी गोरिल्ला युद्ध प्रणाली और सैन्य रणनीतियाँ आज भी भारतीय सेना में प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं। उन्होंने मुगलों और अन्य विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए ‘हिंदवी स्वराज’ की स्थापना की।
सैन्य रणनीति और कुशल प्रशासन
शिवाजी महाराज न केवल एक कुशल सेनापति थे, बल्कि एक दूरदर्शी प्रशासक और चतुर कूटनीतिज्ञ भी थे। उनकी सेना में बड़ी संख्या में मराठा योद्धा शामिल थे, जिनकी वीरता और साहस ने मुगलों, आदिलशाही और निजामशाही जैसी बड़ी ताकतों को चुनौती दी। उन्होंने धर्म, जाति-पाति से ऊपर उठकर राष्ट्रवाद को प्राथमिकता दी और हर वर्ग के लोगों को अपनी सेना में जगह दी।
भारतीय नौसेना के जनक
शिवाजी महाराज ने भारतीय नौसेना की नींव रखी, जिससे उन्हें ‘भारतीय नौसेना का पिता’ कहा जाता है। उन्होंने जयगढ़, विजयदुर्ग और सिंधुदुर्ग जैसे मजबूत समुद्री किलों का निर्माण कर विदेशी आक्रमणकारियों से रक्षा की। उन्होंने समुद्री व्यापार और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक संगठित नौसैनिक बल का गठन किया, जो ब्रिटिश, पुर्तगाली और डच आक्रमणकारियों से भारतीय तटों की रक्षा करता था।
महिला सम्मान और सामाजिक सुधार
शिवाजी महाराज महिलाओं के सम्मान के कट्टर समर्थक थे। उन्होंने अपने सैनिकों को सख्त निर्देश दिए थे कि युद्ध के दौरान किसी भी महिला का अपमान न हो। महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए उन्होंने कठोर दंड व्यवस्था लागू की थी।
राष्ट्रीय एकता और हिंदवी स्वराज
शिवाजी महाराज ने ‘हिंदवी स्वराज’ की स्थापना कर भारत की एकता और अखंडता को सर्वोपरि रखा। उन्होंने साबित किया कि भारतीयों का अपना स्वतंत्र राज्य हो सकता है। उनकी नीतियाँ और विचार आज भी ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ की भावना को सशक्त करते हैं।
अमिट विरासत
शिवाजी महाराज का निधन 3 अप्रैल 1680 को हुआ, लेकिन उनके विचार और उनकी युद्धनीतियाँ आज भी अमर हैं। उनका जीवन चरित्र राष्ट्र निर्माण और पुनरुत्थान के लिए सदैव प्रेरणादायक रहेगा।