सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख चरण था। यह आंदोलन महात्मा गांधी के नेतृत्व में 12 मार्च 1930 को शुरू हुआ और 6 अप्रैल 1930 को ऐतिहासिक दांडी मार्च के साथ चरम पर पहुंचा। इस आंदोलन का उद्देश्य अंग्रेजी हुकूमत के अनुचित कानूनों का शांतिपूर्ण तरीके से उल्लंघन करना था।
सविनय अवज्ञा आंदोलन की प्रमुख जानकारी:
आरंभ:
- दांडी मार्च (12 मार्च – 6 अप्रैल 1930):
महात्मा गांधी ने साबरमती आश्रम (अहमदाबाद) से 78 सहयोगियों के साथ दांडी (गुजरात) तक 24 दिनों का मार्च शुरू किया। उन्होंने 6 अप्रैल 1930 को समुद्र के किनारे पहुंचकर नमक कानून तोड़ा।
मुख्य उद्देश्य:
- नमक कानून का विरोध।
- विदेशी वस्त्रों और उत्पादों का बहिष्कार।
- शराब, मादक पदार्थों और अन्य करों का बहिष्कार।
- ब्रिटिश सरकार की अन्यायपूर्ण नीतियों का शांतिपूर्ण उल्लंघन।
प्रमुख घटनाएँ:
- देशभर में नमक बनाना और उसका वितरण।
- विदेशी वस्त्रों की होली जलाना।
- कर न देना और अंग्रेजी संस्थानों का बहिष्कार।
प्रभाव:
- लाखों भारतीयों ने इस आंदोलन में भाग लिया।
- महिलाओं और किसानों की सक्रिय भागीदारी हुई।
- आंदोलन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को पहचान दिलाई।
- 1931 में गांधी-इरविन समझौता हुआ, जिसमें गांधीजी ने आंदोलन स्थगित करने पर सहमति दी।
गांधी-इरविन समझौता (5 मार्च 1931):
- कांग्रेस ने सविनय अवज्ञा आंदोलन समाप्त कर दिया।
- राजनीतिक बंदियों को रिहा किया गया।
- गांधीजी ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (1931) में भाग लिया।
आंदोलन का प्रभाव:
सविनय अवज्ञा आंदोलन ने भारतीय जनता को स्वतंत्रता संग्राम के प्रति संगठित किया और ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी। यह आंदोलन असहयोग आंदोलन (1920) के बाद स्वतंत्रता के संघर्ष में एक और बड़ा कदम था।
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