मणिकर्णिका घाट, जिसे वाराणसी के प्रमुख घाटों में से एक माना जाता है, हिंदू धर्म में विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। यह घाट काशी (वाराणसी) के पवित्र गंगा नदी के किनारे स्थित है। मणिकर्णिका घाट का नाम “मणि” (रत्न) और “कर्णिका” (कर्ण के साथ जुड़ा हुआ) से लिया गया है। इसका ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व इस घाट से जुड़े विभिन्न पौराणिक कथाओं से उत्पन्न हुआ है।
मणिकर्णिका घाट का इतिहास और पौराणिक महत्व:
पौराणिक कथा: मणिकर्णिका घाट से जुड़ी एक प्रमुख पौराणिक कथा है, जिसके अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती के एक संवाद में, माता पार्वती ने अपने कान की बालियों को खो दिया था। यह बाली काशी में गंगा नदी के किनारे गिर गई। इसके बाद, भगवान शिव ने आदेश दिया कि इस बालि को मणिकर्णिका घाट पर खोजा जाए, और यहीं से घाट का नाम मणिकर्णिका पड़ा
हिंदू धार्मिक दृष्टिकोण: मणिकर्णिका घाट को ‘मृत्यु और मोक्ष का स्थल’ माना जाता है। यहां पर हिन्दू धर्मावलंबी लोग अपने मृतकों की चिता को जलाते हैं। इसे मोक्ष प्राप्ति का स्थान भी माना जाता है। विश्वास है कि यहां मृत्यु के बाद अग्नि से जुड़े संस्कार करने से व्यक्ति को मुक्ति प्राप्त होती है और वह सीधे स्वर्ग की ओर प्रस्थान करता है।
इतिहासिक घटनाएँ: मणिकर्णिका घाट पर प्राचीन काल से ही हिंदू धार्मिक क्रियाएँ होती रही हैं। यह घाट काशी के सबसे पुराने घाटों में से एक है और इसका उल्लेख कई प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में मिलता है।
अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र: मणिकर्णिका घाट पर किए जाने वाले संस्कारों और धार्मिक क्रियाओं के कारण यहां एक विशिष्ट सामाजिक व्यवस्था बनी हुई है। यह घाट धार्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र भी है, जहां पर देश-विदेश से लोग मोक्ष की प्राप्ति के लिए आते हैं।
आधुनिक महत्व: वर्तमान समय में, मणिकर्णिका घाट पर होने वाली धार्मिक गतिविधियाँ, पर्यटकों के आने का कारण बनती हैं। इसके अलावा, घाट के आसपास अनेक मंदिर और स्थान भी हैं, जो लोग दर्शन करने के लिए जाते हैं। मणिकर्णिका घाट की स्थिति गंगा नदी के किनारे होने के कारण यह पर्यटकों के लिए आकर्षण का एक प्रमुख स्थान बना हुआ है।
निष्कर्ष:
मणिकर्णिका घाट का इतिहास धार्मिक, सांस्कृतिक और पौराणिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, बल्कि यह शांति, मोक्ष और मुक्ति की प्राप्ति का भी प्रतीक है।
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