लैब्राडोर रिट्रीवर मैक्स अपनी खुशमिजाजी और लोगों से मिलने के शौक के लिए जाना जाता था। कार की सवारी करना और अपने मालिक के ऑफिस में ग्राहकों का स्वागत करना उसकी दिनचर्या का हिस्सा था। लेकिन 16 साल की उम्र में, मैक्स के व्यवहार में अचानक बदलाव आने लगे। वह घर में दुर्घटनाएँ करने लगा, रात को सो नहीं पाता था और कई बार चिड़चिड़ा हो जाता था। यहां तक कि वह उन आदेशों को भी समझने में असमर्थ हो गया, जिन्हें वह पहले अच्छी तरह जानता था।
वेटरनरी एक्सपर्ट्स के अनुसार, मैक्स संज्ञानात्मक शिथिलता सिंड्रोम (Cognitive Dysfunction Syndrome – CDS) से जूझ रहा था, जो उम्रदराज कुत्तों और बिल्लियों में देखा जाने वाला एक मानसिक विकार है। यह स्थिति इंसानों में होने वाले अल्जाइमर की तरह ही काम करती है, जिसमें स्मृति हानि और मानसिक क्षमताओं में गिरावट देखी जाती है।
क्या जानवरों में भी मानसिक बीमारियाँ होती हैं?
मानसिक स्वास्थ्य को लेकर आमतौर पर इंसानों की चर्चा होती है, लेकिन जानवरों में भी मानसिक विकार विकसित हो सकते हैं। शोधकर्ता बताते हैं कि कई बार आनुवंशिक या विकासात्मक बदलाव मस्तिष्क पर प्रभाव डाल सकते हैं, जिससे मानसिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। इसके अलावा, डरावनी या तनावपूर्ण स्थितियाँ भी जानवरों में मानसिक विकार पैदा कर सकती हैं।
क्या जानवरों में डाउन सिंड्रोम संभव है?
डाउन सिंड्रोम इंसानों में एक आम आनुवंशिक स्थिति है, जो सीखने और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है। यह तब होता है जब किसी व्यक्ति में गुणसूत्र 21 की अतिरिक्त प्रति मौजूद होती है। हालांकि, अन्य जानवरों में यह स्थिति कम ही देखी जाती है, क्योंकि उनकी आनुवंशिक संरचना इंसानों से भिन्न होती है।
लेकिन चिम्पांजी और ऑरंगुटान जैसे हमारे नजदीकी रिश्तेदारों में डाउन सिंड्रोम जैसी स्थितियाँ पाई गई हैं। जापान की एक शोध सुविधा में जन्मी मादा चिम्पांजी कनाको इसका उदाहरण है। अतिरिक्त गुणसूत्र के कारण कनाको को दृष्टि और हृदय संबंधी समस्याएँ थीं। हालाँकि, वैज्ञानिक यह नहीं जान पाए कि उसकी सीखने की क्षमता प्रभावित हुई थी या नहीं।
क्या जंगली जानवरों में भी होती हैं ऐसी समस्याएँ?
वैज्ञानिकों का मानना है कि जंगली चिम्पांजी में भी डाउन सिंड्रोम जैसी आनुवंशिक स्थितियाँ हो सकती हैं, लेकिन जंगल में जीवित रहना उनके लिए कठिन हो जाता है। वहीं, कनाको जैसी चिम्पांजियों को मानव देखभाल और बेहतर चिकित्सा सुविधा मिलती है, जिससे वे लंबा और स्वस्थ जीवन जी पाती हैं।
मानसिक स्वास्थ्य पर शोध क्यों जरूरी है?
शोधकर्ताओं का कहना है कि जानवरों में मानसिक विकारों को समझकर हम उनके बेहतर इलाज और देखभाल के तरीकों को विकसित कर सकते हैं। साथ ही, यह अध्ययन इंसानों के मानसिक स्वास्थ्य विकारों को समझने और उनके उपचार में भी मदद कर सकता है।
निष्कर्ष
मैक्स का मामला यह दिखाता है कि उम्र बढ़ने के साथ जानवरों में भी मानसिक बदलाव आ सकते हैं। उनके स्वास्थ्य का ख्याल रखना और समय पर सही उपचार देना जरूरी है। इसी तरह, मानसिक स्वास्थ्य पर अधिक शोध करके हम जानवरों और इंसानों दोनों के लिए बेहतर भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं।