ब्रिटिश हुकूमत के लिए भारत पर राज करना अब मुमकिन नहीं था। आजादी की लड़ाई अपने चरम पर थी, और हर गली-चौराहे पर ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ गूंज उठ रही थी। दूसरी ओर, ब्रिटेन की आर्थिक हालत इतनी खराब हो चुकी थी कि वह अब भारत को और ज्यादा संभालने की स्थिति में नहीं था।
20 फरवरी 1947: ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने हाउस ऑफ कॉमन्स में एक ऐतिहासिक श्वेत पत्र पेश किया। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि ब्रिटेन जल्द से जल्द भारत को सत्ता सौंप देगा। इस घोषणा के बाद ब्रिटेन के दोनों सदनों में जबरदस्त बहस छिड़ गई। लेकिन एक बात तय थी – ब्रिटेन के पास अब भारत को आजाद करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा था।
क्यों करनी पड़ी ब्रिटेन को यह घोषणा?
- दूसरा विश्वयुद्ध और ब्रिटेन की बदहाली
- विश्वयुद्ध ने ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया था।
- महंगाई आसमान छू रही थी, लोग दो वक्त की रोटी को तरस रहे थे।
- ब्रिटेन अब अपने उपनिवेशों पर खर्च उठाने की स्थिति में नहीं था।
- भारत में आजादी का उग्र आंदोलन
- 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन ने ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला दी थी।
- भारतीय सेना, पुलिस और आम जनता का समर्थन ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बढ़ता जा रहा था।
- ब्रिटिश अफसर खुद मानने लगे थे कि अब भारत को जबरन रोका नहीं जा सकता।
- सत्ता परिवर्तन और नई सोच
- चर्चिल की कंजर्वेटिव सरकार की हार के बाद लेबर पार्टी सत्ता में आई।
- नए प्रधानमंत्री एटली भारत को जल्द से जल्द आजादी देने के पक्ष में थे।
- ब्रिटिश प्रशासन समझ चुका था कि भारत को अब नियंत्रित रखना असंभव हो चुका है।
अंततः ब्रिटेन को झुकना पड़ा!
एटली की घोषणा ने भारत में स्वतंत्रता की अंतिम गूंज को और तेज कर दिया। अगले कुछ महीनों में माउंटबेटन योजना बनी और 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिल गई। ब्रिटेन, जिसने भारत पर 200 वर्षों तक राज किया था, अब उसे छोड़कर जाने के लिए मजबूर हो गया था।
भारत की आजादी न सिर्फ एक राजनीतिक घटना थी, बल्कि यह साबित करने वाला पल भी था कि जब कोई राष्ट्र अपनी मुक्ति के लिए एकजुट हो जाता है, तो दुनिया की सबसे बड़ी ताकतें भी उसे रोक नहीं सकतीं!