1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान, लाखों हिंदू और सिख शरणार्थी पाकिस्तान से अपनी जान बचाकर भारत आए। दिल्ली में पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन वह स्थान था जहाँ ये शरणार्थी पाकिस्तान से आकर उतरे थे। यहाँ की मेन गेट के ऊपर लगी घड़ी उस दौर की गवाह है, जब यहाँ रोज़ हिंदू-सिख शरणार्थी लुट-पिटकर आ रहे थे।
दिल्ली में आज भी कई बुजुर्ग मिलते हैं, जिनकी कमर झुकी हुई है, और जो बंटवारे के बाद किसी तरह से जान बचाकर पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उतरे थे। यहाँ एक तरफ़ हिंदू-सिख पुरानी दिल्ली और अमृतसर स्टेशन पर उतर रहे थे, वहीं लुटे-पिटे मुसलमान लोधी कॉलोनी रेलवे स्टेशन से लाहौर रवाना किए जा रहे थे।
पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के आसपास हजारों शरणार्थी तंबुओं में डेरा डाले हुए थे। यहाँ पर स्टेशन के आसपास हजारों शरणार्थी तंबुओं में डेरा डाले हुए थे। सुबह-शाम का भोजन गुरुद्वारा सीसगंज, गौरी शंकर मंदिर और दूसरे स्वयंसेवी संगठनों के सौजन्य से मिल जाता था। ये लोग कई हफ्तों तक मारे-मारे घूमते रहे छत के लिए। फिर कुछ स्कूलों में इन्हें रात को सोने के लिए छत मिली
दिल्ली में शरणार्थियों के बीच समाज सेवा का काम करने वाले कई लोग थे। उदाहरण के लिए, दिल्ली के मुख्य कार्यकारी पार्षद रहे जगप्रवेश चंद्र किशन गंज के एक कमरे के छोटे-से घर में रहने लगे थे। उन्होंने यहाँ पर जल्दी ही शरणार्थियों के बीच समाज सेवा का काम करना शुरू कर दिया। दिल्ली में सन 1951 में पहला विधानसभा का चुनाव हुआ। वे किशन गंज से कांग्रेस की टिकट पर लड़े और जीते, यानी दिल्ली आने के चार सालों के बाद वे यहाँ विधायक बन गए।
इस प्रकार, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन विभाजन के समय शरणार्थियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान था, जहाँ वे अपनी जान बचाकर भारत पहुँचे और नए जीवन की शुरुआत की।