हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर नाग देवता को समर्पित नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। नाग पंचमी पर हिंदू शास्त्रों में वर्णित सभी तरह के नागों और विशेषकर भगवान शिव के गले में शुशोभित नाग देवता की विशेष रूप से पूजा की जाती है। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागों की पूजा के संदर्भ में एक कथा हैं, जिसमें नागों की पूजा के कारण का उल्लेख मिलता है। वेद और पुराणों में नागों का उद्गम महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी कद्रू से माना जाता है। नागों का मूल स्थान पाताल लोक है।
पौराणिक कथा
भविष्य पुराण की कथा के अनुसार एक बार देवताओं और असुरों ने समुद्र मन्थन से चौदह रत्नों में उच्चै:श्रवा नामक अश्वरत्न प्राप्त किया था। यह अश्व अत्यन्त श्वेत वर्ण का था। उसे देखकर नागमाता कद्रू तथा विमाता विनता- दोनों में अश्व के रंग के सम्बन्ध में वाद-विवाद हुआ। कद्रू ने कहा कि अश्व के केश श्यामवर्ण के हैं। यदि उनका कथन असत्य सिद्ध हो जाए तो वह विनता की दासी बन जाएंगी अन्यथा विनता उनकी दासी बनेगी।
कद्रू ने अपने पुत्र नागों को बाल के समान सूक्ष्म बनाकर अश्व के शरीर चिपक जाने का निर्देश दिया, किन्तु नागों ने अपनी असमर्थता प्रकट की। इस पर क्रोधित होकर कद्रू ने नागों को शाप दिया कि ‘पांडवों के वंश में राजा जनमेजय जब सर्प-सत्र करेंगे, तब उस यज्ञ में तुम सभी अग्नि में भस्म हो जाओगे।’
नागमाता के शाप से भयभीत नागों ने वासुकि के नेतृत्व में ब्रह्मा जी से शाप निवृत्ति का उपाय पूछा। ब्रह्मा जी ने निर्देश दिया कि यायावर वंश में उत्पन्न तपस्वी जरत्कारु तुम्हारे बहनोई होंगे। उनका पुत्र आस्तीक ही तुम्हारी रक्षा करेगा। ब्रह्माजी के इस वचन को सुनकर नागराज वासुकि आदि अतिशय प्रसन्न हो,उन्हें प्रणाम कर अपने लोक में आ गए।
द्वापर युग में,अर्जुन के पौत्र और राजा परीक्षित के पुत्र जन्मजेय ने सर्पों से बदला लेने और नाग वंश के विनाश के लिए एक नाग यज्ञ किया क्योंकि उनके पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नामक सर्प के काटने से हुई थी। नागों की रक्षा के लिए इस यज्ञ को ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने रोका था।
ब्रह्मा जी ने पंचमी तिथि को नागों को यह वरदान दिया था इसी तिथि पर आस्तीक मुनि ने नागों का परिरक्षण किया था और इनके जलते हुए शरीर पर दूध की धार डालकर इनको शीतलता प्रदान की थी। उसी समय नागों ने आस्तिक मुनि से कहा कि पंचमी को जो भी मेरी पूजा करेगा उसे कभी भी नागदंश का भय नहीं रहेगा। तभी से पंचमी तिथि के दिन नागों की पूजा की जाने लगी।
मान्यता है कि यहीं से नाग पंचमी पर्व मनाने की परंपरा प्रचलित हुई। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने कालिया नाग का अहंकार तोड़ा था। अत: नाग पंचमी का यह व्रत ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
नाग की आकृति बनाने का महत्व
हिंदू धर्म में गाय के गोबर से नाग की आकृति बनाना एक प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा है। नाग पंचमी के दिन घरों के मुख्य द्वार पर गाय के गोबर से नाग की आकृति बनाई जाती है। सनातन धर्म में नाग देवता को जल और अन्न का देवता माना जाता है। गोबर से बने नाग की आकृति से नाग देवता की पूजा की जाती है और उनसे वर्षा और समृद्धि की कामना की जाती है।