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श्री वेंकटेश मंदिर में कृष्ण जन्मोत्सव, आस्था और परंपरा की अद्भुत विरासत

संस्कारधानी का श्रीवेंकटेश मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थान नहीं है; यह संस्कृति, परंपरा और आस्था का एक जीवंत स्मारक है। यह मंदिर उत्तर भारत में दक्षिण भारत की धार्मिक परंपराओं को जीवित रखने का एक अद्भुत उदाहरण है। यहां हर वर्ष भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव भक्ति और उत्साह से मनाया जाता है। 80 साल पहले श्री वैष्णव रामानुज संप्रदाय के अनुयायियों ने सिम्स चौक के पास स्थित भगवान श्री वेंकटेश का एकमात्र मंदिर बनवाया था। भक्त हर वर्ष जन्माष्टमी पर यहां भगवान श्रीकृष्ण को देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं। प्रसाद के रूप में पंजरी महत्वपूर्ण है।

श्री वेंकटेश मंदिर में जन्माष्टमी का पर्व बहुत उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। नागपंचमी के दिन झूला महोत्सव शुरू होता है। इस साल भी झूला उत्सव में हर दिन भजन कीर्तन होता रहेगा। यह कृष्ण जन्माष्टमी की रात अपने उच्चतम स्तर पर है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण को वेंकटेश के रूप में पूजा जाता है और मंदिर में सुबह से देर रात तक भक्तों का तांता लगा रहता है। जब भगवान श्री कृष्ण का जन्म मंत्रोच्चार और भक्ति गीतों के बीच होता है, मंदिर का वातावरण श्रद्धा और खुशी से भर जाता है।

श्री वैष्णव रामानुज संप्रदाय की मान्यताएं इस मंदिर में प्रतिबिंबित हैं। श्री वेंकटेश मंदिर की एक और खास परंपरा है कि पिछले आठ दशक में यहां पूजा नहीं हुई है। मंदिर की निरंतर भक्ति की परंपरा कोरोना काल में भी जारी रही, क्योंकि मंदिर के मुख्य पुजारी ने सभी धार्मिक क्रियाओं को पूरे विधि-विधान से चलाया। इस मंदिर को अन्य मंदिरों से अलग बनाने वाले तमिल मंत्रोच्चार के धार्मिक अनुष्ठान हैं।

धनिया पंजीरी भोग में चढ़ाया जाने वाला प्रसाद है और इसे खासतौर से जन्माष्टमी के अवसर पर ही बनाया जाता है, क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण को धनिया पंजीरी बेहद पसंद आता है। इसी वजह से जन्माष्टमी भगवान को पंजीरी का भोग चढ़ाने की परंपरा है। इससे भगवान श्रीकृष्ण बेहद प्रसन्न होते हैं। इन्हीं विशेषताओं और परंपराओं को ध्यान में रखते हुए हमारे शहर के जगन्नाथ मंदिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन पंजीरी का भोग लगाया जाता है, जो इतनी स्वादिष्ट रहती है कि यहां आने वाले भक्तों का दूसरा कारण यह स्वादिष्ट पंजीरी ही बनता है।

माखन के अलावा भगवान कृष्ण को एक और बहुत पसंद आती है वो धनिया की पंजीरी है। इसकी एक कथा यह भी है कि जन्माष्टमी का त्योहार वर्षा ऋतु में आता है। जिस समय वात, कफ, पित्त इन चीजों की समस्याएं बहुत अधिक होती है। साथ ही संक्रमण भी तेजी से फैलता है। ऐसे में धनिया का सेवन इन सभी समस्याओं को दूर करने का काम करता है।

इसमें कई गुण हैं जो हमारे शरीर को स्वस्थ रखते हैं और इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। यही कारण है कि जन्माष्टमी पर धनिया का भोग खासतौर से बनाया जाता है क्योंकि इससे बीमारी भी दूर होती है और भगवान श्रीकृष्ण पंजीरी खाकर प्रसन्न होते हैं। शंकर नगर में जगन्नाथ मंदिर में भी यह परंपरा मनाया जाता है। मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित रमेश तिवारी ने कहा कि यह परंपरा बहुत पुरानी है। यह परंपरा बहुत भक्तिपूर्ण है, इसलिए हर कोई साल में एक दो बार ही मिलने वाली धनिया की पंजीरी को पसंद करता है और हर साल मंदिर में इसका स्वाद लेने आता है।

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