रीतिमुक्त कवि वह कवि होते हैं, जिन्होंने हिंदी साहित्य के रीति काल के बंधनों से स्वतंत्र होकर रचनाएँ कीं और साहित्य में नए विचारों और भावनाओं को प्रस्तुत किया। रीतिकाल के कवियों ने मुख्य रूप से शृंगार रस, नायिका-भेद और राजदरबारी संस्कृति पर ध्यान केंद्रित किया था, जबकि रीतिमुक्त कवियों ने सामाजिक, धार्मिक और व्यक्तिगत भावनाओं को अधिक महत्व दिया। रीतिमुक्त कवि वे कवि थे जिन्होंने लक्षण ग्रंथों की रचना नहीं की और न ही लक्षण ग्रंथों की रीति से बंधकर अपनी रचनाएं कीं. रीतिमुक्त कवियों के कुछ प्रमुख नाम ये रहे: शेख आलम, घनानंद, बोधा, ठाकुर, द्विजदेव.
1. रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ:
- विषय की विविधता: रीतिमुक्त कवियों ने शृंगार के अलावा भक्ति, नीति, वीर रस, और सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं पर भी लिखा।
- सामाजिक चिंतन: इन कवियों की कविताओं में समाज, नैतिकता, धर्म और व्यक्तिगत जीवन की समस्याओं पर गहरी चिंतनशीलता होती है।
- भक्ति और आध्यात्मिकता: रीतिमुक्त कवियों में भक्ति और आध्यात्मिकता का गहरा प्रभाव दिखाई देता है। इस वर्ग के कई कवियों ने भक्ति आंदोलन से प्रेरणा ली और ईश्वर की स्तुति, उपासना और भक्ति का चित्रण किया।
- रीति-कालीन शैली से हटकर: जहाँ रीतिकाल के कवि रासिकता और राजदरबारी जीवन को केंद्र में रखते थे, वहीं रीतिमुक्त कवियों ने इन्हें छोड़कर सहज और प्राकृतिक जीवन के अनुभवों को अपनी कविताओं में स्थान दिया।
2. प्रमुख रीतिमुक्त कवि:
- भक्तिकाल के कवि: कई रीतिमुक्त कवि भक्तिकाल की परंपरा से जुड़े थे, और उन्होंने भगवान की भक्ति को केंद्र में रखते हुए रचनाएँ कीं। इनमें प्रमुख नाम हैं:
- सूरदास: कृष्ण भक्ति के कवि, जिन्होंने अपनी रचनाओं में कृष्ण के बालपन और लीलाओं का वर्णन किया है।
- तुलसीदास: रामचरितमानस के रचयिता, जिन्होंने भगवान राम के चरित्र को अपने काव्य का केंद्र बनाया।
- कबीरदास: एक समाज सुधारक कवि, जिन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों, आडंबर और पाखंड का विरोध किया और ईश्वर की भक्ति पर बल दिया।
- रैदास: संत और कवि, जिन्होंने सामाजिक समानता और भक्ति को अपने काव्य का विषय बनाया।
- नीति और समाज चिंतन के कवि:
- भूषण: वीर रस के प्रमुख कवि, जिन्होंने छत्रपति शिवाजी और बुंदेलखंड के राजा छत्रसाल के वीरतापूर्ण कार्यों का वर्णन किया।
- सत्यव्रत: नीति और समाज में नैतिकता के महत्व को उन्होंने अपनी कविताओं में व्यक्त किया।
3. रीति और रीतिमुक्त का अंतर:
- रीतिकाल के कवि: रीतिकाल के कवियों का मुख्य ध्यान शृंगारिक और दरबारी काव्य पर था। वे अधिकतर राजाओं की प्रशंसा और दरबारी संस्कृति के आसपास लिखते थे।
- रीतिमुक्त कवि: रीतिमुक्त कवियों ने इन विषयों से खुद को अलग रखा और सामाजिक, धार्मिक, और नैतिकता जैसे व्यापक मुद्दों पर अपनी रचनाओं का केंद्र बनाया। उन्होंने आम जीवन, लोक संस्कृति और भक्ति को काव्य का आधार बनाया।
निष्कर्ष:
रीतिमुक्त कवि हिंदी साहित्य में एक विशेष स्थान रखते हैं, क्योंकि उन्होंने रीति-कालीन सीमाओं से बाहर निकलकर साहित्य में नए विषयों और विचारों को प्रस्तुत किया। इन कवियों ने भक्ति, समाज सुधार, नैतिकता और वीरता जैसे विषयों पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे हिंदी साहित्य को नई दिशा और दृष्टिकोण मिला।