ऋषि पंचमी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है, जो भाद्रपद शुक्ल पंचमी को मनाया जाता है। यह विशेष रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है, जो अपने रजस्वला (मासिक धर्म) के समय हुई किसी भी अनजानी या जानबूझकर की गई त्रुटियों के लिए क्षमा याचना करती हैं। ऋषि पंचमी का व्रत सात ऋषियों – कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, वशिष्ठ, गौतम, जमदग्नि, और विश्वामित्र – के प्रति श्रद्धा और सम्मान प्रकट करने के लिए रखा जाता है।
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को कुछ विशेष नियमों का पालन करना होता है ऋषि पंचमी के दिन, महिलाएं इन नियमों का उल्लंघन करने पर हुई गलतियों के लिए प्रायश्चित करती हैं और शुद्धि के लिए उपवास रखती हैं। यह व्रत एक प्रकार से मानसिक और शारीरिक शुद्धि का प्रतीक माना जाता है, जहां महिलाएं भगवान और ऋषियों से अपनी त्रुटियों के लिए क्षमा मांगती हैं।
इस दिन महिलाएं स्नान करके पूजा करती हैं, सात ऋषियों का ध्यान करती हैं, और शुद्ध आहार ग्रहण करती हैं।
ऋषि पंचमी तिथि
इस वर्ष (2024) ऋषि पंचमी की तिथि 9 सितंबर 2024 को है। पंचमी तिथि की शुरुआत 8 सितंबर 2024 को रात 10:01 बजे होगी और इसका समापन 9 सितंबर 2024 को रात 9:18 बजे होगा।
इस तिथि को महिलाएं विशेष पूजा और व्रत करती हैं, विशेष रूप से उन ऋषियों को सम्मानित करने के लिए जिनसे मानवजाति ने धर्म, ज्ञान और संस्कृति का मार्गदर्शन प्राप्त किया।
ऋषि पंचमी व्रत कथा
ऋषि पंचमी व्रत की कथा हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखती है। इस व्रत को करने वाली महिलाएं ऋषि पंचमी की पूजा और कथा सुनकर अपने पापों से मुक्ति प्राप्त करती हैं। कथा इस प्रकार है:
पुराणों के अनुसार, एक समय की बात है, विदर्भ देश में एक ब्राह्मण परिवार रहता था। परिवार के मुखिया का नाम उत्तंक था और उनकी पत्नी का नाम सुशीला था। उनका एक पुत्र और एक पुत्री थी। जब पुत्री विवाह योग्य हुई, तो उसका विवाह एक अच्छे ब्राह्मण युवक से कर दिया गया।
कुछ समय बाद, वह पुत्री विधवा हो गई और अपने मायके लौट आई। कुछ समय पश्चात, उसे शारीरिक कष्ट और बीमारियां घेरने लगीं। उत्तंक ने इस समस्या के समाधान के लिए ज्योतिषियों से परामर्श किया और एक ज्ञानी ऋषि के पास गए। ऋषि ने ध्यान करते हुए बताया कि यह पुत्री अपने पिछले जन्म या वर्तमान जन्म में रजस्वला काल में अशुद्धता का पालन नहीं कर पाई थी, और इसी कारण उसे यह कष्ट हो रहा है।
ऋषि ने सुझाव दिया
ऋषि ने सुझाव दिया कि यदि वह पुत्री ऋषि पंचमी का व्रत करे और सात ऋषियों की पूजा करे, तो उसे अपने पापों से मुक्ति मिलेगी और उसका शारीरिक कष्ट समाप्त हो जाएगा।
उसके बाद, उस ब्राह्मण की पुत्री ने श्रद्धा और विधिपूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उसे शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिल गई और उसका जीवन सुखमय हो गया।
यह व्रत कथा यह सिखाती है कि ऋषि पंचमी व्रत करने से रजस्वला काल के दौरान हुई अशुद्धियों से मुक्ति मिलती है और ऋषियों की कृपा से जीवन में शांति और समृद्धि आती है।