आसान शब्दों में कहा जाए तो परिवार या रिश्तेदार में जिनकी मृत्यु हो जाती है उन्हें पीतर या पितृ कहते हैं. सामान्य धारणा यह है कि जिनकी मृत्यु हो जाती है वह पितर बन जाते हैं लेकिन गरूड़ पुराण से यह जानकारी मिलती है कि मृत्यु के पश्चात मृतक व्यक्ति की आत्मा प्रेत रूप में यमलोक की यात्रा शुरू करती है। सफर के दौरान संतान द्वारा प्रदान किये गये पिण्डों से प्रेत आत्मा को बल मिलता है। यमलोक में पहुंचने पर प्रेत आत्मा को अपने कर्म के अनुसार प्रेत योनी में ही रहना पड़ता है अथवा अन्य योनी प्राप्त होती है। ये आत्माएं 1 से 100 वर्ष तक मृत्यु और पुनर्जन्म की मध्य की स्थिति में रहती हैं ।
पितृपक्ष के दिनों में पितरों को पिंडदान श्राद्ध, तर्पण, आदि कर प्रसन्न किया जाता है. वायु पुराण में उल्लेख है कि पितृ पक्ष में पितृ सूक्ष्म रूप सें धरती पर वास करते हैं. वहीं तीन पीढ़ियों तक को पितृ माना गया है. पितृकुल से पिता( यदि मृत्यु हो गई हो), दादा और परदादा शामिल होते हैं. वहीं मातृकुल में नाना, परनाना और उसके ऊपर के एक वृद्ध पर नाना होता हैं. यानि तीन पीढ़ियों तक को पितृ कहते है और पितृ पक्ष में इनकी पूजा की जाती है.
पितृ पक्ष का खास महत्व है. मनुष्य जन्म लेते ही तीन ऋण से युक्त हो जाता है. पहला होता देवी से देवताओं का ऋण, दूसरा ऋषि ऋण होता है. जो मनुष्य को सही रास्ता दिखाते हैं और तीसरा होता है पितृ ऋण. पितृ हमारे पूर्वज होते हैं. इनके ही आशीर्वाद से घर में सुख समृद्धि आती है. वहीं पितृ ऋण उतारने का समय पितृ पक्ष होता है. पितृ ऋण उतारने के लिये पितृपक्ष में श्राद्ध, तर्पण, ब्राह्मण भोज आदि कराया जाता है. इससे पितृ प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं. इसीलिए पितृपक्ष में विसर्जन जरूरी होता है.
पितृ दोष क्या होता है
हमारे ये ही पूर्वज सूक्ष्म व्यापक शरीर से अपने परिवार को जब देखते हैं और महसूस करते हैं कि हमारे परिवार के लोग न तो हमारे प्रति श्रद्धा रखते हैं और न ही इन्हें कोई प्यार या स्नेह है। न ही किसी भी अवसर पर ये हमको याद करते हैं, न ही अपने ऋण चुकाने का प्रयास ही करते हैं, तो ये आत्माएं दुखी होकर अपने वंशजों को श्राप दे देती हैं,जिसे “पितृ- दोष” कहा जाता है। माना जाता है कि पितृ दोष एक अदृश्य बाधा है। ये बाधा पितरों द्वारा रुष्ट होने के कारण होती है। पितरों के रुष्ट होने के कई कारण हो सकते हैं। आपके आचरण से, किसी परिजन द्वारा की गयी गलती से, श्राद्ध आदि कर्म ना करने से, अंत्येष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण भी हो सकता है।
पितृ दोष से क्या होती हैं परेशानियां…
इसके अलावा मानसिक अवसाद,व्यापार में नुकसान,परिश्रम के अनुसार फल न मिलना, विवाह या वैवाहिक जीवन में समस्याएं, कॅरिअर में समस्याएं या संक्षिप्त में कहें तो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति और उसके परिवार को बाधाओं का सामना करना पड़ता है। पितृ दोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति, गोचर, दशाएं होने पर भी शुभ फल नहीं मिल पाते, कितना भी पूजा पाठ, देवी, देवताओं की अर्चना की जाए,उसका भी पूर्ण शुभ फल नहीं मिल पाता।
पितृ दोष से मुक्ति के लिये क्या करें
पितृ दोष से छुटकारा पाने के लिए श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों की मृत्यु तिथि या सर्व पितृ अमावस्या पर पर तर्पण करें, ब्राह्मण को भोजन कराएं. यथाशक्ति दान भी करें.
पितृ दोष शांति के लिए पितृ पक्ष में रोजाना घर में शाम के वक्त दक्षिण दिशा में तेल का दीपक लगाएं. इससे पूर्वज प्रसन्न होते हैं.
पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध के बाद काले तिल, नमक, गेंहू, चावल, गाय का दान, सोना, वस्त्र, चांदी का दान भी पितृ दोष से मुक्ति दिलाता है.
परिवार के सभी सदस्यों से बराबर मात्रा में सिक्के इकट्ठे करके उन्हें मंदिर में दान करें। ऐसा आप 5 गुरुवार को करें। मतलब यह कि यदि आप अपनी जेब से 10 का सिक्का ले रहे हैं तो घर के अन्य सभी सदस्यों से भी 10-10 के सिक्के एकत्रित करने उसे मंदिर में दान कर दें। यदि आपके दादाजी हैं तो उनके साथ जाकर दान करें।
कर्पूर जलाने से देवदोष व पितृदोष का शमन होता है। प्रतिदिन सुबह और शाम घर में संध्यावंदन के समय कर्पूर जरूर जलाएं। कर्पूर को घी में डूबोकर फिर जलाएं और कभी कभी गुढ़ के साथ मिलाकर भी जलाएं।
कौए, चिढ़िया, कुत्ते और गाय को रोटी खिलाते रहना चाहिए। उक्त चारों में से जो भी समय पर मिल जाए उसे रोटी खिलाते रहें।
विष्णु भगवान के मंत्र जाप, श्रीमद्भा गवत गीता का पाठ करने से पितृदोष चला जाता है। एकादशी के व्रत रखना चाहिए