भस्म का महत्व और प्रतीकात्मकता
नागा साधु, जो भगवान शिव के अनन्य भक्त होते हैं, अपने शरीर पर भस्म (भभूत) का लेप करते हैं। यह लेप न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखता है बल्कि इसके वैज्ञानिक कारण भी हैं। सनातन धर्म में भस्म को सांसारिक मोह-माया से मुक्ति और वैराग्य का प्रतीक माना गया है। इसे लगाने से साधुओं को भौतिक बंधनों से दूर रहने की प्रेरणा मिलती है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
भस्म के वैज्ञानिक लाभ भी महत्वपूर्ण हैं:
- संक्रमण से बचाव: भस्म में ऐसे तत्व होते हैं जो हानिकारक बैक्टीरिया और जीवाणुओं को नष्ट करते हैं।
- तापमान नियंत्रण: भस्म शरीर पर इंसुलेटर का काम करती है, जो साधुओं को ठंड या गर्मी से बचाती है।
भस्म बनाने की प्रक्रिया
भस्म तैयार करने की विधि विशेष और पवित्र होती है। इसमें पीपल, पाखड़, रसाला, बेलपत्र, केला और गाय के गोबर को हवन कुंड में जलाया जाता है। इस राख को कच्चे दूध में मिलाकर सात बार अग्नि में तपाया जाता है। इस प्रकार से तैयार भस्म का उपयोग नागा साधु करते हैं।
नागा साधुओं का जीवन और तपस्या
नागा साधु, सनातन धर्म के रक्षक माने जाते हैं। वे महाकुंभ जैसे आयोजनों में नजर आते हैं और इसके बाद अपनी साधनाओं के लिए अज्ञात स्थानों पर चले जाते हैं। ये साधु कठोर तपस्या और शिव भक्ति में लीन रहते हैं।
अखाड़ों का योगदान
नागा साधु प्राचीन अखाड़ों से जुड़े होते हैं, जिनका सनातन धर्म में गहरा इतिहास है। ये अखाड़े हिंदू धर्म के प्रति निष्ठा और तपस्या का केंद्र हैं।
महाकुंभ जैसे आयोजनों में नागा साधुओं की उपस्थिति धर्म और संस्कृति के महत्व को दर्शाती है। उनकी जीवनशैली, तपस्या और भस्म के उपयोग का धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण उन्हें विशिष्ट बनाता है।
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