माता परमेश्वरी की पूजा और मान्यता भारतीय समाज के विभिन्न समुदायों में व्यापक रूप से फैली हुई है, और कई समुदायों के धार्मिक विश्वासों और परंपराओं में उनका विशेष स्थान है। उनके साथ जुड़े कुछ प्रमुख समुदाय निम्नलिखित हैं:
1. देवांगन समुदाय:
देवांगन समुदाय माता परमेश्वरी को अपने कुलदेवी के रूप में मानते हैं और वस्त्र निर्माण में उनकी पूजा करते हैं।
2. गोंड जनजाति:
गोंड जनजाति में भी माता परमेश्वरी की पूजा होती है। गोंड जनजाति मुख्यतः मध्य भारत के राज्यों जैसे छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, और महाराष्ट्र में निवास करती है। इस समुदाय में माता परमेश्वरी को “देवी” के रूप में पूजा जाता है और उनकी पूजा से संबंधित विभिन्न अनुष्ठान किए जाते हैं।
3. खरिया जनजाति:
खरिया जनजाति, जो ओडिशा और झारखंड क्षेत्रों में निवास करती है, भी माता परमेश्वरी की पूजा करती है। इस जनजाति में देवी को अपने समुदाय की संरक्षिका मानते हैं और उनके आशीर्वाद से जुड़ी मान्यताएं प्रचलित हैं।
4. कुर्मी समुदाय:
कुर्मी समुदाय, जो भारत के विभिन्न हिस्सों में फैला हुआ है, में भी माता परमेश्वरी की पूजा की जाती है। इस समुदाय में देवी की पूजा के लिए विशेष उत्सव और अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं।
5. कुली समुदाय:
कुली समुदाय में भी माता परमेश्वरी की पूजा होती है। इस समुदाय में देवी को खेतों और फसलों की सुरक्षा के लिए पूजा जाता है, और उनके आशीर्वाद से जुड़ी मान्यताएं महत्वपूर्ण होती हैं।
इन विभिन्न समुदायों में माता परमेश्वरी की पूजा के तरीके और मान्यताएं अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन सभी में उनका सम्मान और पूजा एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। उनकी पूजा के दौरान विभिन्न अनुष्ठान, भजन, और धार्मिक कृत्य किए जाते हैं, जो उनकी आराधना का हिस्सा होते हैं।

पूजा कैसे की जाती है?
माता परमेश्वरी की पूजा भारतीय धार्मिक परंपराओं के अनुसार विभिन्न तरीकों से की जाती है। पूजा की विधि और अनुष्ठान हर समुदाय और क्षेत्र के अनुसार भिन्न हो सकते हैं, लेकिन आमतौर पर पूजा की प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण शामिल होते हैं:
1. पूजा की तैयारी:
- स्थान और पवित्रता: पूजा करने से पहले पूजा स्थल को स्वच्छ किया जाता है। यह स्थान विशेष रूप से शुद्ध और शांत होना चाहिए।
- सामग्री और वस्त्र: पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे फूल, दीपक, अगरबत्ती, चंदन, फल, प्रसाद, और पानी की व्यवस्था की जाती है। देवी की मूर्ति या चित्र को अच्छे से सजाया जाता है।
2. माता की स्थापना:
- मूर्ति या चित्र की स्थापना: माता परमेश्वरी की मूर्ति या चित्र को पूजा स्थल पर स्थापित किया जाता है। इसे अच्छी तरह से धोकर, ताजे वस्त्र पहनाए जाते हैं और सुंदर ढंग से सजाया जाता है।
- दीप जलाना: देवी के सामने दीपक जलाया जाता है, जो प्रकाश और पवित्रता का प्रतीक होता है।
3. अर्चना और पूजन:
- अभिषेक: देवी की मूर्ति पर दूध, दही, शहद, गंगाजल, या अन्य पवित्र तरल पदार्थों से अभिषेक किया जाता है।
- पुष्प अर्पण: देवी को ताजे फूल अर्पित किए जाते हैं। फूलों की सुंदरता और सुगंध देवी के प्रति भक्ति और सम्मान का प्रतीक होती है।
- धूप और अगरबत्ती: देवी के सामने धूप और अगरबत्ती जलाकर पूजा की जाती है, जिससे वातावरण पवित्र होता है।
- आरती: देवी की आरती की जाती है, जिसमें देवी के नाम के भजन गाए जाते हैं और दीपक को देवी की मूर्ति या चित्र के सामने घुमाया जाता है।
- मंत्र जाप: देवी के मंत्रों का जाप किया जाता है, जैसे “ॐ श्री मातर परमेश्वरी नमः”, जो भक्ति और समर्पण को दर्शाता है।
4. प्रसाद अर्पण:
- प्रसाद: देवी को फल, मिठाई, और विशेष पकवानों का प्रसाद अर्पित किया जाता है। प्रसाद को श्रद्धा पूर्वक तैयार किया जाता है और पूजा के बाद भक्तों में वितरित किया जाता है।
5. कथा सुनना और भजन:
- कथा और भजन: देवी की पूजा के दौरान उनकी कहानियाँ सुनाई जाती हैं और भजन गाए जाते हैं। यह पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है जो भक्ति और धार्मिक ज्ञान को बढ़ावा देता है।
6. प्रार्थना और संकल्प:
- प्रार्थना: पूजा के अंत में माता से अपने परिवार की सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य, और समृद्धि की प्रार्थना की जाती है। भक्त माता के सामने अपनी इच्छाओं और संकल्पों को रखते हैं।
7. अर्चना का समापन:
- धन्यवाद: पूजा के समापन पर माता का धन्यवाद किया जाता है और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने की प्रार्थना की जाती है।
- छोटे पूजा अनुष्ठान: कभी-कभी, पूजा के अंत में छोटे धार्मिक अनुष्ठान या अनुष्ठान भी किए जाते हैं, जैसे सामूहिक भजन या कीर्तन।
पूजा के ये सभी चरण भक्तों के दिल में श्रद्धा और भक्ति को प्रकट करते हैं और देवी के साथ एक दिव्य संबंध स्थापित करते हैं। पूजा की विधियाँ स्थानीय परंपराओं और व्यक्तिगत श्रद्धा के अनुसार बदल सकती हैं।