मार्गशीर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष का नवां महीना है, जिसे अगहन मास भी कहा जाता है। यह कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन से शुरू होकर पौष पूर्णिमा तक चलता है। मार्गशीर्ष माह को विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व प्राप्त है क्योंकि इसे विष्णु भगवान और माता लक्ष्मी की आराधना के लिए उत्तम माना जाता है।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा का महत्व
- लक्ष्मी पूजन का महत्व:
- मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी और चंद्रमा की पूजा करने से धन-धान्य, सुख-समृद्धि और शांति प्राप्त होती है।
- मान्यता है कि इस दिन पीपल के पेड़ पर मां लक्ष्मी का वास होता है। इसलिए पीपल की पूजा और जल अर्पित करने से धन संबंधी समस्याएं दूर होती हैं।
- धार्मिक कृत्य और उपाय:
- चंद्रमा को दूध और जल से अर्घ्य देना मानसिक शांति प्रदान करता है।
- हल्दी से स्वास्तिक बनाकर घर के मुख्य द्वार पर लगाने से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।
- तुलसी के गमले में सिक्का दबाकर रखने से आर्थिक तंगी दूर होती है।
- वैदिक महत्व:
- श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार, भगवान कृष्ण ने कहा है कि महीनों में मार्गशीर्ष उनका स्वरूप है।
- इस मास में ध्यान, दान, और व्रत का विशेष फल मिलता है।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा के उपाय
- धन संबंधी समस्याओं के लिए:
- पीपल के पेड़ की पूजा करें और दूध में जल मिलाकर अर्पित करें।
- बीमारियों से मुक्ति के लिए:
- चंद्रमा को अक्षत और दूध मिश्रित जल से अर्घ्य दें।
- वैवाहिक जीवन में मधुरता लाने के लिए:
- हल्दी और सुपारी को लाल कपड़े में बांधकर मंदिर में अर्पित करें।
- नकारात्मक ऊर्जा से बचाव के लिए:
- घर के मुख्य दरवाजे पर हल्दी से स्वास्तिक बनाएं।
पूजन विधि
- प्रातःकाल स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की मूर्ति के सामने दीप जलाएं।
- सफेद फूल, दूध, और खीर का भोग लगाएं।
- पूर्णिमा की रात में चंद्रमा को अर्घ्य दें और परिवार की समृद्धि की कामना करें।
मार्गशीर्ष मास का पालन भक्तों को अध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है और जीवन में सुख-शांति लाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।