कार्तिक पूर्णिमा के पर्व को त्रिपुरारी पूर्णिमा और देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन देवी-देवताओं का पृथ्वी पर आगमन होता है और उनके भव्य स्वागत के लिए दीपक जलाएं जाते हैं।
त्रिपुरी पूर्णिमा का महत्व
हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा के दिन को बहुत ही शुभ माना जाता है। पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि इस दिन ही भगवान शिव ने त्रिपुरा नाम के राक्षस का अंत किया था। इस वजह से कई स्थानों पर इस पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं।
दीपदान का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान करने का भी विशेष महत्व होता है। इस दिन दीपदान करने से सभी देवताओं का आशीर्वाद मिलता है। कार्तिक पूर्णिमा का दिन देवी-देवताओं को प्रसन्न करने का दिन है। इस दिन पूजापाठ करके आप देवी-देवताओं से भूलचूक के लिए माफी मांग सकते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान लक्ष्मी-नारायण की पूजा करना बेहद शुभ माना जाता है। साथ ही अगर संभव हो तो भगवान सत्यनारायण की कथा जरूर सुनें।
नदी में स्नान
इस दिन गंगाजी में डुबकी लगाने भी विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन गंगा में स्नान करने से आपके सभी पापों का अंत होकर आपको पुण्य की प्राप्ति होती है। गंगा नदी के आलावा अन्य नदियों में भी सूर्योदय तथा उसके पूर्व स्नान करने से पुण्य लाभ होता है इसलिए छत्तीसगढ़ के मुख्य नदियों महानदी ,शिवनाथ नदी ,सोन नदी ,खारुन नदी इत्यादि में डुबकी लगाकर श्रद्धालु नदियों में जलाभिषेक करते है इसके साथ वहाँ मेला मड़ई का आयोजन भी होता है इसके साथ ही छत्तीसगढ़ विभिन्न स्थलों में मेला मड़ई शुरू हो जाता है इस दिन जरूरतमंदों को दान करने का भी विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि इस दिन का किया गया दान आपको कई गुना फल देता है। दान करने वालों को स्वर्ग में स्थान मिलता है। इस दिन गाय के बछड़े को दान करने से भी आपको शुभ गुण वाली संतान प्राप्त होती है।
भगवान शिव बने थे त्रिपुरारी
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक महाबलशाली असुर का वध इसी दिन किया था। इससे देवताओं को इस दानव के अत्याचारों से मुक्ति मिली और देवताओं ने खुश होकर भगवान शिव को त्रिपुरारी नाम दिया।
भगवान विष्णु का प्रथम अवतार
पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि भगवान विष्णु का प्रथम अवतार भी इसी दिन हुआ था। प्रथम अवतार के रूप में भगवान विष्णु मत्स्य यानी मछली के रूप में प्रकट हुए थे। इस अवतार में भगवान विष्णु ने इस संसार को भयानक जल प्रलय से बचाया था। साथ ही उन्होंने हयग्रीव नामक दैत्य का भी वध किया था जिसने वेदों को चुराकर सागर की गहराई में छिपा दिया था। इस दिन सत्यनारायण भगवान की कथा करवाकर जातकों को शुभ फल की प्राप्ति हो सकती है।
गुरु नानक जयंती
गुरु नानक जयंती हर साल कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। नानक जी ने समाज में ज्ञान का प्रकाश फैलाने का कार्य किया था , इसी वजह से गुरु नानक जयंती को प्रकाश पर्व के रूप में भी मनाया जाता है. यह पर्व सिख समुदाय के लोगों के लिए सबसे बड़ा उत्सव है। इस दिन को सिख समुदाय के लोग बहुत धूमधाम से मनाते हैं। गुरु नानक जी को सिख समुदाय का पहला गुरु माना जाता है।
क्या है कार्तिकेय और इस पूर्णिमा का संबंध
इसी प्रकार शिव पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र भगवान कार्तिकेय के संबंध में भी एक कथा है जो इस दिन उनकी पूजा के महत्व का वर्णन करती है। कहते हैं कि जब प्रथम पूज्य होने की प्रतियोगिता में उनके छोटे भाई श्री गणेश को विजयी घोषित कर दिया गया तो कार्तिकेय काफी नाराज हो गए और साधना करने बन चले गए। जब शिव और पार्वती उन्हें मनाने गए तो उन्होंने क्रोध में शाप दिया कि यदि कोई स्त्री उनके दर्शन करने आयेगी तो तो वो सात जन्म तक वैध्व्य भोगेगी और यदि किसी पुरुष ने ऐसा करने का प्रयास किया तो वो मृत्यु के बाद नरक जायेगा। बाद में किसी तरह महादेव और देवी ने उनका क्रोध शांत किया और उनसे कहा कि कोई एक दिन तो उनके दर्शन के लिए होना चाहिए, तब कार्तिकेय ने कहा कार्तिक पूर्णिमा पर उनका दर्शन महा फलदायी होगा।
इसीलिए साल में एक ही बार वो अब दर्शन देते हैं। इसी वजह से उनका एक ही मंदिर है जो ग्वालियर में है। 400 साल पुराने कहे जाने वाले इस मंदिर के पट वर्ष में एक बार कार्तिक पूर्णिमा की रात को खोला जाता है और प्रातकाल स्नान पूजा के बाद एक साल के लिए बंद कर दिए जाते हैं।