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Sunday, December 8, 2024

भैरव अष्टमी : महत्व, पूजा विधि और कथा

भैरव अष्टमी, जिसे काल भैरव जयंती के रूप में भी जाना जाता है, भगवान काल भैरव के प्रकट होने का दिन है। यह तिथि हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को आती है। इस दिन भक्त भगवान भैरव की पूजा कर उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए विशेष अनुष्ठान करते हैं।


भैरव अष्टमी का महत्व

  1. काल भैरव का जन्म: मान्यता है कि भगवान शिव ने काल भैरव के रूप में अवतार लिया था। यह अवतार अन्याय और अधर्म को नष्ट करने के लिए हुआ था।
  2. पापों का नाश: भैरव अष्टमी पर पूजा-अर्चना से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है।
  3. राहु-केतु दोष निवारण: ज्योतिष के अनुसार, इस दिन पूजा करने से राहु और केतु के दोष समाप्त होते हैं।
  4. रक्षा और सुरक्षा: भगवान काल भैरव की पूजा से जीवन में सुरक्षा, सुख-शांति और उन्नति प्राप्त होती है।
  5. काला जादू और बुरी नजर से मुक्ति: भगवान भैरव की कृपा से नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है।

भैरव अष्टमी की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शंकर में सर्वश्रेष्ठ को लेकर बहस होने लगी. हर कोई स्वयं को दूसरे से महान और श्रेष्ठ बताता था. जब तीनों में से कोई इस बात का निर्णय नहीं कर पाया कि सर्वश्रेष्ठ कौन है तो यह कार्य ऋ​षि-मुनियों को सौंपा गया. उन सभी ने सोच विचार के बाद भगवान शंकर को सर्वश्रेष्ठ बताया.

ऋषि-मुनियों की बातों को सुनकर ब्रह्मा जी का एक सिर क्रोध से जलने लगा. वे क्रोध में आकर भगवान ​शंकर का अपमान करने लगे. इससे भगवान शंकर भी अत्यंत क्रोधित होकर रौद्र रूप में आ गए और उनसे ही उनके रौद्र स्वरूप काल भैरव की उत्पत्ति हुई.

काल भैरव ने घमंड में चूर ब्रह्म देव के जलते हुए सिर को काट दिया. इससे उन पर ब्रह्म हत्या का दोष लग गया. तब भगवान शिव ने उनको सभी तीर्थों का भ्रमण करने का सुझाव दिया. फिर वे वहां से तीर्थ यात्रा पर निकल गए. पृथ्वी पर सभी तीर्थों का भ्रमण करने के बाद काल भैरव शिव की नगरी काशी में पहुंचे. वहां पर वे ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त हो गए.

शिव की नगरी काशी काल भैरव को इतनी अच्छी लगी कि वे सदैव के लिए काशी में ही बस गए. भगवान शंकर काशी के राजा हैं और काल भैरव काशी के कोतवाल यानि संरक्षक हैं. आज भी काशी में काल भैरव का मंदिर है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो भी व्यक्ति काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा करता है, उसे काल भैरव का दर्शन अवश्य करना चाहिए. तभी उसकी पूजा पूर्ण होती है.


भैरव अष्टमी पर पूजा विधि

  1. प्रातः स्नान: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें।
  2. पूजा स्थल की सफाई: भगवान काल भैरव की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीप जलाएं।
  3. मंत्र जाप:
  • “ॐ कालभैरवाय नमः” का 108 बार जाप करें।
  1. प्रसाद अर्पित करें: भगवान को दूध, दही, अक्षत, फल और मिठाई अर्पित करें।
  2. काले कुत्ते को भोजन: इस दिन काले कुत्ते को भोजन खिलाने से भगवान भैरव प्रसन्न होते हैं।
  3. भजन और कीर्तन: भगवान भैरव के भजन और कीर्तन करें।

भैरव अष्टमी के दिन क्या करें?

  1. काशी या अन्य तीर्थ स्थान पर स्नान करें।
  2. निर्धनों को भोजन और वस्त्र दान करें।
  3. काले तिल, काले वस्त्र और सरसों का दान करें।
  4. भगवान भैरव के नाम का स्मरण करें।

काल भैरव के अन्य रूप

भगवान भैरव के आठ रूप हैं, जिन्हें “अष्ट भैरव” कहते हैं:

  1. असितांग भैरव
  2. चण्ड भैरव
  3. क्रोध भैरव
  4. रूद्र भैरव
  5. कपाली भैरव
  6. भीषण भैरव
  7. संवर्त भैरव
  8. उन्मत्त भैरव

भैरव अष्टमी पर भगवान काल भैरव की पूजा करने से भक्तों के जीवन में समृद्धि, शांति और सुरक्षा आती है। यह तिथि अधर्म के विनाश और धर्म की स्थापना का प्रतीक है। इस दिन भक्ति और सेवा भाव से भगवान का पूजन करना अत्यंत फलदायी होता है।

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