Total Users- 1,025,352

spot_img

Total Users- 1,025,352

Saturday, June 21, 2025
spot_img

देवउठनी एकादशी: तुलसी-शालीग्राम विवाह की कथा और पूजा विधि

देवउठनी एकादशी हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु के जागरण और उनकी पूजा के लिए माना जाता है। दरअसल, भगवान विष्णु चार महीने की निद्रा के बाद इस दिन जागते हैं। इस दिन भक्त उपवास रखकर भगवान विष्णु की अराधना करते हैं, जिससे जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति हो।

तुलसी और शालीग्राम विवाह की कथा

ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार तुलसी (वृंदा) शंखचूड़ नामक असुर की पत्नी थीं। शंखचूड़ बहुत बड़ा अधर्मी था, लेकिन उसकी पत्नी सतीत्व का पालन करती थी। यही कारण था कि वह बहुत बलवान था और देवता उसको हरा नहीं पा रहे थे। भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रूप धारण कर तुलसी को छू लिया, जिससे उनका सतीत्व भंग हो गया।

भगवान विष्णु के ऐसा करते ही शंखचूड़ की शक्ति समाप्त हो गई। उसके बाद शिवजी ने उसका वध कर दिया। तुलसी को इस बात की जानकारी हुई, तो बहुत ही क्रोधित हुईं। उन्होंने भगवान विष्णु को पत्थर (शालीग्राम) बनने का श्राप दे दिया।

भगवान विष्णु ने श्राप स्वीकार करते हुए कहा कि वह शालिग्राम रूप में पृथ्वी पर रहेंगे। तुम मुझको तुलसी के एक पौधे के रूप में छांव दोगी। उनके भक्त तुलसी से विवाह करके पुण्य लाभ प्राप्त करेंगे। इस दोनों का कार्तिक शुक्ल एकादशी को विवाह किया जाता है। आज भी तुलसी नेपाल की गंडकी नदी पर पौधे के रूप में पृथ्वी पर हैं, जहां शालिग्राम मिलते हैं।

देवउठनी एकादशी की पूजा-विधि

देवउठनी एकादशी का दिन भगवान विष्णु के प्रति समर्पण का पर्व है, और इस दिन विशेष पूजा और व्रत का महत्व है। पूजा की विधि इस प्रकार है:

  1. सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. मंदिर जाकर दीप प्रज्वलित करें और भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।
  3. भगवान विष्णु को पुष्प, तुलसी के पत्ते और फल अर्पित करें।
  4. इस दिन व्रत करना अत्यंत शुभ माना जाता है, जिससे आत्मिक और शारीरिक लाभ प्राप्त होते हैं।
  5. पूजा के बाद भगवान विष्णु की आरती करें और भोग अर्पित करें। ध्यान रखें कि भोग में सात्विक पदार्थों का ही प्रयोग करें।
  6. देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह का आयोजन भी होता है, जो इस पर्व का एक प्रमुख अंग है।

तुलसी विवाह का महत्व

तुलसी और शालीग्राम का विवाह भारतीय संस्कृति में बहुत पवित्र माना जाता है। यह विवाह न केवल धार्मिक मान्यताओं का पालन है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक संतुलन का भी प्रतीक है। इसे करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। तुलसी विवाह का आयोजन भक्तों में एकता, प्रेम और भक्ति के महत्व को भी उजागर करता है।

spot_img

More Topics

मदुरै में बिना अनुमति के बनाए गए मंदिर को तोड़ने पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाया रोक

सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के मदुरै में विस्तारा रेजीडेंसी...

बिहार में छह नए एयरपोर्ट विकसित करने को मिली मंजूरी, क्या बदलाव होगा.?

बिहार में छह नए एयरपोर्ट विकसित करने को मंजूरी...

इसे भी पढ़े