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Sunday, May 18, 2025
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धर्म, इतिहास और संस्कृति की भूमि: जानिए कुरुक्षेत्र की गौरवगाथा

भारत के इतिहास में जब भी धर्म और अधर्म की लड़ाई की बात होती है, तो एक ही स्थान सबसे पहले ज़हन में आता है — हरियाणा का कुरुक्षेत्र, जहां द्वापर युग में महाभारत का युद्ध लड़ा गया था। यह न सिर्फ युद्ध का मैदान था, बल्कि वहीं भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का दिव्य उपदेश भी दिया था, जिसे आज “ज्योतिसर” के नाम से जाना जाता है।

🔱 कुरुक्षेत्र: धर्म और न्याय की भूमि

कुरुक्षेत्र को धर्मक्षेत्र कहा जाता है — क्योंकि यह सिर्फ युद्धभूमि नहीं, बल्कि धर्म की स्थापना का साक्षी रहा है। पांडवों और कौरवों के बीच लड़ा गया महाभारत का युद्ध 18 दिन तक चला, जिसमें अधर्म पर धर्म की विजय हुई।

🏛️ ऐतिहासिक गहराईयों से भरा कुरुक्षेत्र

कुरुक्षेत्र का इतिहास राजा कुरु से शुरू होता है, जिनके नाम पर इस स्थान का नाम पड़ा। इसके बाद यहां पर बौद्ध, जैन, हूण, पठान, मुगल और ब्रिटिश सभी ने शासन किया।
मुगलकाल में शेख चिल्ली का मकबरा बना, और रजिया सुल्तान से लेकर औरंगज़ेब तक ने यहां राज किया। 1707 में औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद नादिर शाह, पठान, सिख और अंत में अंग्रेज़ों का आगमन हुआ।

📜 आज़ादी के बाद का सफर

1947 में भारत के स्वतंत्र होने के बाद यह क्षेत्र करनाल जिले में शामिल हुआ। लेकिन 23 जनवरी 1973 को यह स्वतंत्र ज़िला बना और तब से लेकर आज तक यह धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विकसित हो रहा है।

🕉️ धार्मिक दृष्टि से अति विशेष

कुरुक्षेत्र को हिंदू धर्म में एक मोक्षदायिनी भूमि माना गया है। मान्यता है कि यहां मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति को मुक्ति मिलती है, इसलिए अस्थि विसर्जन के लिए भी यहां के पवित्र तालाबों का महत्व है।
यहां 367 तीर्थ स्थल, 48 कोस का तीर्थ क्षेत्र और पिहोवा का सरस्वती तीर्थ जैसे स्थान हैं, जहां आज भी पिंडदान और धार्मिक अनुष्ठान होते हैं।

✍️ कुरुक्षेत्र: ज्ञान का स्रोत

क्या आप जानते हैं? ऋषि मनु ने कुरुक्षेत्र में ही मनुस्मृति की रचना की थी। और यही नहीं, महाभारत के दौरान अर्जुन को गीता का ज्ञान भी यहीं मिला था, जो आज संपूर्ण विश्व के लिए जीवन का मार्गदर्शन है।


📍 निष्कर्ष:
कुरुक्षेत्र केवल एक ऐतिहासिक स्थल नहीं, बल्कि वह पावन भूमि है जहां धर्म, युद्ध, ज्ञान और संस्कृति का मेल होता है। यह भारत की आत्मा को दर्शाने वाला स्थल है, जिसकी मिट्टी में आज भी गूंजती है गीता की वो अमर वाणी –
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन…”

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