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Tuesday, October 8, 2024

ईश्वरचंद्र विद्यासागर की वजह से बना था विधवाओं के विवाह का कानून

सेनानी और समाज सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर का जन्म हुआ था। ईश्वरचंद्र को दलितों व गरीबों का संरक्षक माना जाता था। उन्होंने विधवा पुर्नविवाह और नारी शिक्षा जैसे मुद्दों के लिए आवाज उठाई और अपने कार्यों के बदौलत वह समाज सुधारक के तौर पर जाने जाते थे। हालांकि उनका कद इससे भी कई गुना बड़ा था। बता दें कि बंगाल में उनको पुनर्जागरण के स्तंभों में से एक माना जाता है। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर ईश्वरचंद्र विद्यासागर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में…


जन्म और शिक्षा
बंगाल के मेदिनीपुर में 26 सितंबर 1820 को ईश्वरचंद्र विद्यासागर का जन्म हुआ था। उनके बचपन का नाम ईश्वर चंद्र बंद्योपाध्याय था। संस्कृत भाषा और दर्शन में अगाध ज्ञान होने की वजह से उनको छात्र जीवन में संस्कृत कॉलेज में उनको ‘विद्यासागरÓ की उपाधि मिली थी। जिसके बाद उनको ईश्वरचंद्र विद्यासागर के नाम से जाना जाने लगा। उन्होंने बेहद कम सुविधाओं में अपनी शिक्षा पूरी की। उस दौरान समाज में तमाम कुरीतियां फैली थीं।


समाज सुधारक
बता दें कि स्थानीय भाषा और लड़कियों की शिक्षा के लिए ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने स्कूलों की एक श्रृंखला के साथ कोलकाता में मेट्रोपॉलिटन कॉलेज की स्थापना की। विद्यासागर ने इन स्कूलों को चलाने में आने वाले पूरे खर्च की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली थी। विद्यासागर विशेष रूप से स्कूली बच्चों के लिए बांग्ला भाषा में लिखी गई किताबों की बिक्री से मिले फंड से स्कूलों का खर्च चलाते थे।
वहीं साल 1855 में जब विद्यासागर को स्कूल-निरीक्षक/इंस्पेक्टर बनाया गया, तो उन्होंने अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले जिलों में बालिकाओं के लिए तमाम स्कूलों की स्थापना की। लेकिन उनके उच्चाधिकारियों को विद्यासागर का यह कार्य पसंद नहीं आया। जिसके बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और बेथुन के साथ जुड़ गए।


विधवा विवाह एक्ट
विधवा विवाह कानून में भी ईश्वरचंद्र विद्यासागर की भूमिका काफी अहम मानी जाती है। बताया जाता है कि विद्यासागर के लगातार दबाव की वजह से ब्रिटिश सरकार यह एक्ट बनाने के लिए विवश हुई। हालांकि शुरूआत में उन्होंने इस कानून के लिए अकेले मुहिम चलाई थी। फिर देखते ही देखते इस मुहिम में उनके साथ हजारों लोग जुड़ गए। उन्हें मिलते इस भारी समर्थन से ब्रिटिश सरकार मुश्किल में पड़ गई। जिसका नतीजा यह निकला कि साल 1857 में रूढ़ीवादी हिन्दू समाज के विरोध के बावजूद भी सरकार ने विधवा विवाह एक्ट लागू किया।

पेश की मिशाल

समाज में विधवा पुर्नविवाह की मिशाल पेश करते हुए विद्यासागर ने अपने बेटे की शादी एक विधवा से करवाई। इसके अलावा उन्होंने बहुपत्नी प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ भी आवाज उठाई। विद्यासागर के इन्हीं प्रयासों से उनको समाज सुधारक के तौर पर पहचान मिली। उनका मानना था कि अंग्रेजी और संस्कृत भाषाओं के समन्वय से भारतीय और पाश्चात्य परंपराओं की श्रेष्ठता को हासिल किया जा सकता है।

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