ऋग्वेद से उत्पत्ति, महर्षि विश्वामित्र ने किया प्रचारि
गायत्री मंत्र को हिंदू धर्म में सबसे पवित्र और शक्तिशाली मंत्रों में से एक माना जाता है। यह मंत्र ऋग्वेद (मंडल 3, सूक्त 62, मंत्र 10) में उल्लेखित है और इसे महर्षि विश्वामित्र ने प्रकट किया था। यह देवी गायत्री को समर्पित है, जो ज्ञान और प्रकाश की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं।
गायत्री मंत्र का वैदिक महत्व
गायत्री मंत्र का मूल स्वरूप इस प्रकार है:
ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्॥
यह मंत्र सूर्य देव (सविता) की स्तुति करने वाला एक वेद मंत्र है। कहा जाता है कि महान ऋषि विश्वामित्र ने घोर तपस्या के बाद इस मंत्र को प्राप्त किया और इसे विश्वकल्याण के लिए प्रचारित किया। वैदिक काल से लेकर आज तक यह मंत्र हिंदू समाज में प्रतिष्ठित बना हुआ है।
उपनिषदों और गीता में गायत्री मंत्र
गायत्री मंत्र का उल्लेख न केवल वेदों में बल्कि उपनिषदों, भगवद गीता और पुराणों में भी मिलता है। इसे ब्रह्मज्ञान और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करने वाला मंत्र माना जाता है, जो तीन लोकों (भूः, भुवः, स्वः) का प्रतिनिधित्व करता है।
गायत्री मंत्र का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक प्रभाव
सनातन धर्म में गायत्री मंत्र को सर्वोच्च मंत्र माना गया है। इसके नियमित जप से मानसिक, शारीरिक और आत्मिक उन्नति होती है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी, इस मंत्र के उच्चारण से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और एकाग्रता बढ़ती है।
यज्ञों और संस्कारों में अनिवार्य प्रयोग
गायत्री मंत्र को विभिन्न यज्ञों, ध्यान और धार्मिक संस्कारों में विशेष स्थान प्राप्त है। विशेष रूप से, उपनयन संस्कार (जनेऊ संस्कार) में इस मंत्र का अनिवार्य रूप से जप किया जाता है।
निष्कर्ष
गायत्री मंत्र केवल एक साधारण मंत्र नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक ऊर्जा स्रोत है, जो व्यक्ति को सत्य, ज्ञान और प्रकाश की ओर ले जाता है। यह वेदों की आत्मा के रूप में प्रतिष्ठित है और हिंदू धर्म में इसे अत्यधिक श्रद्धा और भक्ति के साथ जपा जाता है।