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देवों के वास्तुकार ने इस मंदिर का किया था निर्माण !जब धरती पर छाया 6 माह का अंधकार

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विवाहित महिलाएं अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए पूजा करती हैं, तो वहीं अविवाहित कन्याएं सही जीवनसाथी की कामना के साथ भोलेनाथ की पूजा करती हैं. सावन के महीने में पुरुष वर्ग भी भक्ति में पीछे नहीं रहते हैं.

रायपुर:- महज 10 दिनों बाद भगवान भोलेनाथ का सबसे प्रिय महीना यानी सावन माह की शुरुआत होने वाली है. कहते हैं कि इस दौरान भगवान भोलेनाथ की विधि-विधान से पूजा अर्चना करने से मनवांछित फल मिलता है. विवाहित महिलाएं अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए पूजा करती हैं, तो वहीं अविवाहित कन्याएं सही जीवनसाथी की कामना के साथ भोलेनाथ की पूजा करती हैं. सावन के महीने में पुरुष वर्ग भी भक्ति में पीछे नहीं रहते हैं. कांवड़ यात्रा कर वो भगवान भोलेनाथ को जल अर्पित करते हैं. आज हम आपको भोलेनाथ के एक ऐसे स्वरूप के बारे में बताने वाले हैं, जो जमीन से स्वतः प्रकट हुए हैं.

दूर-दूर से आते हैं भक्त


रायपुर जिला मुख्यालय से दक्षिण-पूर्व में 45 किलोमीटर दूर धर्म नगरी राजिम है. राजिम पुरातत्वों और प्राचीन सभ्यता के लिए प्रसिद्ध है. राजिम के राजीव लोचन मंदिर परिसर में राजराजेश्वर महादेव विराजमान हैं. यह भगवान भोलेनाथ का स्वयंभू शिवलिंग है. वैसे तो यहां लोग बाकी दिनों में भी पूजा अर्चना करते ही हैं, लेकिन सावन के महीने में शिव भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ता है. हर वर्ष धर्म नगरी राजिम में कांवरियों की अच्छी भीड़ देखने मिलती है. दूर-दूर से लोग पैदल भगवान राजराजेश्वर भोलेनाथ को जलाभिषेक करने के लिए पहुंचते हैं.

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रामायण काल से जुड़ा है इतिहास


राजिम के राजराजेश्वर महादेव शिवलिंग स्वयंभू है, यानी जमीन से स्वतः प्रकट हुए हैं. इस स्वयंभू शिवलिंग का कनेक्शन रामायण काल से भी है. वनवास के दौरान श्रीराम भगवान, माता सीता और लक्ष्मण जी इस शिवलिंग के दर्शन करते हुए आगे बढ़े थे. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह मंदिर कितना पुराना है. पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि किसी समय में छह माह तक रात था, इसी दौरान ब्रह्मांड के मुख्य वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा ने इस मंदिर को बनाया था. मान्यता यह भी है कि केवल दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामना पूरी हो जाती है.

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