आदि शंकराचार्य वेद के परमज्ञाता थे, वे अद्वैतमत के प्रणेता थे उनके अनुसार आत्मा और परमात्मा एक है। हमें उनमे जो भी अन्तर नजर आता है उसका कारण अज्ञान होता है। उनके अनुसार परमात्मा सगुण और निरगुण दोनों हो सकता हैं (साकार अथवा निराकार ) राष्ट्रीय एकात्मता की स्थापना के लिए जगतगुरू शंकराचार्य ने देश के चारों कोनों पर चार धाम तथा द्वादश ज्योतिर्लिंगों की स्थापना की। चार धामों में हिमालय पर बद्रीनाथ, समुद्र किनारे जगन्नाथपुरी, रामेश्वर तथा द्वारिकापुरी स्थापित किए।
उनका व्यक्तित्व अलौकिक था। वे आठ वर्ष की आयु में चारो वेदो के ज्ञाता। 12 वर्ष की आयु सभी शास्त्रों में पारंगत तथा 16 वर्ष की आयु में ब्रह्मसूर पर भाष्य लिखकर शंकराचार्य बन गये। उनका जन्म ई-पू- 477 में केरल के कालडी नामक ग्राम में हुआ था और 32 वर्ष की आयु में पवित्र केदारनाथ धाम में शरीर त्याग दिया उन्होनें हिन्दु धर्म को पुन: स्थापित व प्रतिष्ठित किया। अपने तर्को एवं शास्त्राथों के द्वारा उन्होने विभिन्न पंचो एवं गलत मानताओं में उचित सुधार कर मुख्य धारा में जोड़ा। एक तरफ उन्होने अद्वैत चिन्तन को पुनर्जीवित करके सनातन हिन्दू धर्म के दार्शनिक आधार को सुदृढ़ किया, तो दुसरी तरफ उन्होने जनसामान्य में प्रचलित मूर्तिपूजा का औचित्य सिद्ध करने का भी प्रयास किया। वे आदि गुरू, प्रछनन बुद्ध तथा शिव अवतार भी कहलाये।
आदि गुरू शंकराचार्य ने सनातन धर्म के कल्याणार्थ सम्पूर्ण भारत में पृथक-पृथक
दिशाओं में चार मठों की स्थापना की ये मठ हैं –
वेदान्त ज्ञानमठ, श्रृंगेरी मठ ( दक्षिण भारत ) – यह मठ भारत के दक्षिण भाग में रामेश्वरम् में स्थित है। इस मठ के अन्तर्गत संन्यासियों के सरस्वती, भारती तथा पुरी सम्प्रदाय आते हैं। इस मठ का महावाक्य “अहं ब्रह्मास्मि” है तथा मठ के अन्तर्गत यजुर्वेद आता है। इस मठ ले प्रथम मठाधीश आचार्य सुरेश्वर ही थे, जिनका पूर्व में नाम मण्डन मिश्र था। सर्वप्रथम शंकराचार्य जी ने इसी मठ की स्थापना की
थी। वर्तमान में श्री भारती कृष्ण तीर्थ स्वामी जी इस मठ के 36 वें मठाधीश विराजमान हैं।
गोवर्धन मठ, जगन्नाथपुरी ( पूर्वी भारत ) – यह मठ भारत के पूर्वी भाग में उड़ीसा राज्य के पुरी नगर में स्थित है। इस मठ के प्रथम मठाधीश आद्य शंकराचार्य के प्रथम शिष्य पद्मपाद हुए। इस मठ के अन्तर्गत आरण्य सम्प्रदाय को रखा गया। इसके अवलम्बन के लिए ऋग्वेद को प्रमुखता प्रदान की गई तथा “प्रज्ञानं ब्रह्म” नामक महावाक्य प्रदान किया है। श्रृंगेरी मठ के पश्चात् शंकराचार्य जी ने इस मठ की स्थापना की थी। वर्तमान में श्री निश्चलानंद सरस्वती जी इस मठ के 145 वे मठाधीश है।
शारदा (कालिका) मठ ( पश्चिम भारत ) – यह मठ गुजरात में द्वारकाधाम में स्थित है। इस मठ के अन्तर्गत “तीर्थ” और “आश्रम” सम्प्रदाय आते हैं। इसमें सामवेद की प्रमुखता है तथा महावाक्य “तत्त्वमसि” है। शारदा मठ के प्रथम मठाधीश हस्तामलक (पृथ्वीधर) थे। हस्तामलक शंकराचार्य जी के प्रमुख चार शिष्यों में से एक थे। गोवर्धन मठ के पश्चात् शारदा मठ की स्थापना की गई। वर्तमान में श्री स्वामी सदानंद सरस्वती जी इस मठ के 80 वे मठाधीश है।
ज्योतिर्पीठ, बद्रिकाश्रम (उत्तर भारत)- यह मठ उत्तरांचल में बद्रिकाश्रम में स्थित है। इस मठ के अन्तर्गत ‘गिरि’, ‘पर्वत’ एवं ‘सागर’ नामक संन्यासी सम्प्रदाय आते हैं। इस मठ का महावाक्य ‘अयमात्मा ब्रह्म” है। इस मठ से सम्बन्धित वेद अथर्ववेद है। ज्योतिर्मठ के प्रथम मठाधीश आचार्य तोटक बनाए गए। वर्तमान में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी इस मठ के 46 वे मठाधीश है।
काँची मठ – काँची मठ को भी आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित मठ के रुप में माना जाता है, किन्तु यह विवादास्पद है। काँची मठ की परम्परा में माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने इस मठ की स्थापना की थी और यहीं उन्होंने अपना शरीर त्यागा था। वर्तमान में स्वामी विजयेंद्र सरस्वती मठाधीश हैं|