रायपुर: डॉ. आंबेडकर नगर, गुढियारी में आश्विन पूर्णिमा के पावन अवसर पर बौद्ध धम्म से जुड़े एक विशेष धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस मौके पर उपासक और उपासिकाओं ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया और बौद्ध धम्म के गहरे आध्यात्मिक सिद्धांतों को समझने का अवसर पाया। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य बौद्ध धम्म के मूल सिद्धांतों—धम्म, ध्यान, और करुणा—पर आधारित शिक्षाओं को साझा करना था।
आश्विन पूर्णिमा: बौद्ध धम्म में आत्मचिंतन का पवित्र दिवस संयोजक ने आश्विन पूर्णिमा का बौद्ध धम्म में महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह दिन विशेष रूप से आत्मचिंतन और धम्म के मार्ग पर चलने का होता है। उन्होंने बताया कि इस दिन बौद्ध अनुयायी बुद्ध के उपदेशों का स्मरण करते हुए सुत्त और गाथाओ का पठन करके उन्हे समझने का अभ्यास करते हैं। यह दिन बौद्ध धम्म के अनुयायियों के लिए मानसिक शांति और आंतरिक संतुलन प्राप्त करने का पवित्र अवसर माना जाता है।
धम्म के पालन का संदेश संयोजक ने धम्म के पालन और उसके प्रभावों पर भी जोर दिया। उन्होंने बताया कि धम्म का सही रूप से पालन जीवन को शांति और करुणा से भर देता है। धम्म का मार्ग न केवल दुख से मुक्त होने के साथ-साथ उन्नति की ओर ले जाता है, बल्कि यह व्यक्ति के जीवन को अधिक उद्देश्यपूर्ण और दूसरों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण बनाता है। इस अवसर पर उन्होंने बताया कि बुद्ध को संबोधि प्राप्त होने के सात वर्षो पश्चात बुद्ध ने आषाढ पूर्णीमा से विद्वानो को अभिधम्म बताया । बुद्ध के अभिधम्म को सुनकर उनकी माता महा प्रजापति गौतमी अर्हत हो गई । बुद्ध प्रति दिन जो अभिधम्म विद्वानो को बताते थे उसे भिक्षु सारिपुत्त को भी बताते थे एवं सारीपुत्त पाच सौ भिक्षुओ को । अश्विन पूर्णीमा का दिन ही अभिधम्म सिखाने का अंतिम दिन था इस प्रकार पाच सौ एक भिक्षुओ ने अभिधम्म के मार्ग की महत्ता को विस्तार से समझा ।
कार्यक्रम का प्रमुख आकर्षण अभिधम्म के साथ-साथ बुद्ध के काल मे एवं बुद्ध के पश्चात भी अश्विन पूर्णीमा मे धम्म के अन्तर्गत हुई विशेष क्रिया कलापो की भी चर्चा की गई जिसमे श्रीलंका के राजा देवानांमप्रिय तिस्स का सम्राट अशोक को किया गया निवेदन कि वे एक शिष्ट मंडल उनके यहा भेजे एवं इस निवेदन को स्वीकार कर सम्राट अशोक ने संघमित्रा के साथ शिष्टमंडल भेजा जिससे श्रीलंका मे भिक्षुणी संघ की स्थापना की गई । अश्विन पूर्णीमा के दिन ही आदरणीय अर्हंत महाअरिट्ठ इनकी अध्यक्षता मे विनय पिटक का प्रथम संज्ञायन श्रीलंका के थुपारामात मे हुआ । उपस्थित उपासक और उपासिकाओं ने शांत चित्त और गहनता से धम्म की जानकारियो को सुना । अंत मे जानकारी दी गई कि , बोधिसत्व मैत्रेय जो पृथ्वी पर बुद्ध होने वाले है उन्होने बुद्ध के कालखंड मे जन्म लिया है । भगवान बुद्ध और सारिपुत्त की अभिधम्म की चर्चा सुनकर मैत्रेय चिवर धारण कर भिक्षु बन गए ।
सभी उपासक उपासिकाओ ने धम्म के अधिकाधिक अभ्यास एवं धम्म के प्रचार-प्रसार पर ध्यान केन्द्रित करने हेतु अपने संकल्प को दोहराया है ।
खीर – पुरी वितरण करके और आपस मे अश्विन पूर्णीमा की शुभकामनाएं देकर आयोजन का समापन धम्म पालन गाथा के साथ किया गया ।उपस्थित लोगों ने एक-दूसरे को शुभकामनाएं दीं और बौद्ध धम्म की शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लिया। इस आयोजन ने बौद्ध धम्म के मूल सिद्धांतों को समझने , जागरूकता को बढ़ाने का एक बेहतरीन अवसर प्रदान किया।
इस तरह, आश्विन पूर्णिमा का यह आयोजन न केवल धाम्मिक श्रद्धा को बल देने वाला रहा, बल्कि धम्म और और आष्टांगिक मार्ग के महत्व को जन-जन तक पहुंचाने का एक सफल प्रयास भी साबित हुआ।