मनेंद्रगढ़ के डीएफओ मनीष कश्यप को महुआ बचाओ अभियान के लिए नई दिल्ली में सम्मानित किया गया। यह अभियान महुआ के पौधों की पुनरुत्पत्ति और संरक्षण पर केंद्रित है, और इसके तहत गांवों में खाली पड़ी ज़मीन और खेतों में महुआ के पौधे लगाए जा रहे हैं। इसके अलावा, इन पौधों की सुरक्षा के लिए ट्री गार्ड्स का भी इस्तेमाल किया जा रहा है।
इस वर्ष, डीएफओ मनीष कश्यप और एनजीओ लैंग्वेज एंड लर्निंग फाउंडेशन को पुरस्कार के लिए चुना गया। इस अभियान में अब तक छत्तीसगढ़ के 47 गांवों में 30,000 महुआ के पौधे लगाए जा चुके हैं, जिससे लगभग 4,500 ग्रामीणों को लाभ हुआ है। महुआ के पेड़ से आदिवासी परिवारों को हर साल दो क्विंटल फूल और 50 किलो बीज मिलते हैं, जिनकी कीमत करीब 10,000 रुपये होती है। इस पहल से महुआ के उत्पादन में वृद्धि होगी और पर्यावरणीय लाभ भी होगा, जैसे कि मिट्टी का कटाव कम होना।
महुआ के पेड़ों की संख्या में कमी और उनके पुनरुत्पादन में कठिनाइयाँ प्रमुख चिंता का विषय हैं। खासकर बस्तर और सरगुजा के क्षेत्र में महुआ के छोटे और मध्य आयु के पेड़ों की संख्या बहुत कम हो गई है। इसके अलावा, आदिवासी क्षेत्र में महुआ का संग्रहण करने से पहले भूमि पर आग लगाने की आदत भी महुआ के पौधों के जीवन को खतरे में डालती है।
महुआ पेड़ आदिवासियों के लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक और सांस्कृतिक स्रोत है, और इसका संरक्षण भारत के विभिन्न राज्यों में किया जा रहा है, ताकि भविष्य में इस बहुमूल्य पेड़ की संख्या बनी रहे।