महादेव (भगवान शिव) ने तीसरी आँख खोलकर कामदेव को भस्म करने की घटना शिव पुराण और अन्य पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है। इसके पीछे मुख्य कथा इस प्रकार है—
कथा का सारांश:
जब देवी सती ने योग अग्नि द्वारा आत्मदाह किया, तो भगवान शिव अत्यंत शोक में चले गए और समाधि में लीन हो गए। इस बीच, राक्षस ताड़कासुर का अत्याचार बहुत बढ़ गया था। देवताओं को पता था कि ताड़कासुर का वध केवल भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय के द्वारा ही संभव है। लेकिन शिव जी तो गहरी तपस्या में लीन थे और विवाह की कोई संभावना नहीं थी।
इस समस्या को हल करने के लिए देवताओं ने कामदेव (प्रेम के देवता) से अनुरोध किया कि वे अपनी शक्ति से शिव जी की समाधि को भंग करें और उन्हें देवी पार्वती की ओर आकर्षित करें।
कामदेव का शिवजी की तपस्या भंग करना:
कामदेव ने बसंत ऋतु का सहारा लिया और अपने पुष्प बाण (प्रेम बाण) से भगवान शिव पर वार किया। इससे शिव जी की समाधि भंग हो गई और उन्हें एक क्षण के लिए सांसारिक प्रेम का अनुभव हुआ। लेकिन जैसे ही शिव जी को अपनी साधना भंग होने का आभास हुआ, वे अत्यंत क्रोधित हो गए।
कामदेव का भस्म होना:
गुस्से में आकर भगवान शिव ने तीसरी आंख खोल दी, जिससे निकली अग्नि से कामदेव भस्म हो गए।
परिणाम और शिक्षा:
- रति का विलाप और कामदेव का पुनर्जन्म:
- कामदेव की पत्नी रति ने शिव जी से प्रार्थना की, तब शिव जी ने कहा कि कामदेव बिना शरीर के (अनंग रूप में) जीवित रहेंगे और केवल भावनात्मक प्रेम के रूप में संसार में प्रभावी रहेंगे।
- बाद में, कामदेव का पुनर्जन्म प्रद्युम्न के रूप में हुआ, जो भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र थे।
- शिव और पार्वती का विवाह:
- इस घटना के बाद, देवी पार्वती ने कठोर तपस्या की और अंततः भगवान शिव ने उनसे विवाह किया, जिससे कार्तिकेय का जन्म हुआ और उन्होंने ताड़कासुर का वध किया।
इस कथा से मिलने वाली सीख:
- ध्यान और संयम का महत्व: शिव जी की तीसरी आंख आत्मज्ञान और विवेक का प्रतीक है। यह बताता है कि ध्यान में विघ्न डालने से विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं।
- कामना (इच्छाओं) का नियंत्रण: कामदेव भौतिक इच्छाओं के प्रतीक हैं, और उनका भस्म होना यह दर्शाता है कि अति भोगवाद (अत्यधिक इच्छाएं) व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास में बाधक बन सकते हैं।
- प्रेम का सूक्ष्म स्वरूप: भले ही कामदेव का भौतिक शरीर भस्म हो गया, लेकिन प्रेम और आकर्षण की भावना (अनंग रूप) हमेशा जीवित रहती है।
यह कथा हमें यह सिखाती है कि प्रेम और वासना के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है, और सच्ची भक्ति से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है।