महाभारत एक महाकाव्य है जो धर्म, अधर्म, नीति और जीवन के गूढ़ तत्वों का विस्तृत वर्णन करता है। महाभारत का युद्ध मुख्य रूप से कौरवों और पांडवों के बीच हुआ था। इसका कारण कई परस्पर जुड़ी घटनाओं और विवादों का परिणाम था।
मुख्य कारण:
- धृतराष्ट्र और पांडु के उत्तराधिकार का विवाद:
- धृतराष्ट्र नेत्रहीन थे, इसलिए उन्हें सिंहासन का उत्तराधिकारी नहीं बनाया गया। उनके छोटे भाई पांडु को राजा बनाया गया। यह स्थिति धृतराष्ट्र के मन में असंतोष पैदा करती है।
- कौरव और पांडवों के बीच ईर्ष्या:
- पांडव गुणवान, धार्मिक और प्रजाप्रिय थे, जबकि कौरव, विशेषकर दुर्योधन, उनके प्रति ईर्ष्या रखते थे।
- हस्तिनापुर के सिंहासन पर अधिकार:
- दुर्योधन चाहता था कि केवल कौरव हस्तिनापुर पर शासन करें, जबकि पांडवों को उनका हिस्सा चाहिए था।
- लाक्षागृह का षड्यंत्र:
- दुर्योधन ने पांडवों को मारने के लिए एक षड्यंत्र रचा और उन्हें लाक्षागृह में जला देने की योजना बनाई। पांडव किसी तरह बच निकले।
- द्रौपदी का अपमान:
- जुए के खेल में युधिष्ठिर ने अपना सबकुछ हारने के बाद द्रौपदी को भी दांव पर लगा दिया। दुर्योधन और दु:शासन ने द्रौपदी का चीरहरण करने की कोशिश की, जो पांडवों के लिए असहनीय था।
- जुए का खेल और वनवास:
- पांडवों को 12 साल के वनवास और 1 साल के अज्ञातवास का सामना करना पड़ा। इसके बाद भी दुर्योधन ने उनका राज्य लौटाने से इनकार कर दिया।
- कृष्ण के शांति प्रस्ताव का अस्वीकार:
- भगवान कृष्ण ने दुर्योधन को पांडवों को मात्र 5 गांव देने का प्रस्ताव दिया, लेकिन दुर्योधन ने इसे ठुकरा दिया और कहा कि वह सुई की नोक जितनी भी भूमि नहीं देगा।
परिणाम:
इन सभी घटनाओं ने कौरव और पांडवों के बीच युद्ध को अपरिहार्य बना दिया। यह युद्ध धर्म और अधर्म के बीच संघर्ष का प्रतीक है। महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ, जिसमें पांडवों ने विजय प्राप्त की और यह सिखाया कि अधर्म का अंत निश्चित है।