पिछले दिनों एक खबर सुर्खियों पर थी कि छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण विभाग के सदस्य सचिव पी अरुण प्रसाद ने एक उच्चाधिकारी को इसलिये सस्पेंड किया , क्योंकि उनकी इच्छा के विरुद्ध उस अधिकारी ने पर्यावरण संरक्षण की होर्डिंग लगवाई थी , हमारे एक पत्रकार साथी ने यह बताते हुए कहा कि सही है , ये सदस्य सचिव 6 माह से अधिक समय से विभाग में किसी भी प्रकार का कार्य करते नहीं दिखाई दे रहे थे . यहां तक उनके पास अपने नियत कार्यालय में नियत समय में बैठने का समय भी नहीं मिलता था , अब अपनी उपस्थिति को इस प्रकार की कार्यवाही कर के दिखा रहे हैं . इस पर दूसरा साथी मुस्कुराते हुए बोला , यदि कार्यवाही करनी ही थी तो बीरगांव , भनपुरी , उरला , उरकुरा समेत औद्योगिक क्षेत्रों में नंगी आंखों से दिखते, प्रदूषण पर नियंत्रण के अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं करने वाले रायपुर के आरओ (रिजिनल ऑफिसर ) के ऊपर कार्यवाही करते . इससे कम से कम गर्त में डूबते पर्यावरण संरक्षण विभाग के नाम पर कालिख कुछ तो कम होती . अब पत्रकार माधो बोले , ऐसा लगता है कि राजनेताओं से संरक्षण प्राप्त अनेक रसूखदार औद्योगिक घरानो के मधुमक्खी के छत्ते से सदस्य सचिव भी भयभीत हैं वर्ना सुबह को उस क्षेत्र के किसी भी आवास की छत पर रोज़ जमने वाली काली राख की परत की लाज रखते . वैसे आज बात चली तो दूर तरफ निकल पड़ी वर्ना उस क्षेत्र की जनता छ. ग. पर्यावरण संरक्षण विभाग के सदस्य सचिव के भरोसे नहीं बल्कि भगवान के भरोसे है , क्योंकि उसकी लाठी की मार बिना दिखे , बिना आवाज़ किये होती है .
इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक
दैनिक पूरब टाइम्स