नमस्कार . पिछले कई हफ्तों में मैंने मज़ेदार शायरिया , जोश भर देने वाली , दोस्ती पर , शराबी दिल के जज़्बों को इज़हार करती व मंच संचालन के वक़्त बोली जा सकने वाली शायरियों के संकलन को आपके सामने प्रस्तुत किया था . आज आपके सामने शब्दों क्र जादुगर साहिर साहब की कालजयी रचनाओं में से , कुछ से, आपका परिचय करवाते हैं .चाहे उर्दू शायरी हो या हिंदी फिल्मी गाने , हिन्दुस्तान में कोई भी सुधि प्रेमी , साहिर लुधियानवी से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा होगा . साहिर पहले गीतकार थे, जिन्हें अपने गानों के लिए रॉयल्टी मिलती थी. ये उन्हीं का प्रयास था कि आकाशवाणी पर गानों के प्रसारण के समय गायक तथा संगीतकार के साथ गीतकार का भी नाम लिया जाने लगा. इससे पहले तक गानों के प्रसारण समय सिर्फ गायक और संगीतकार का नाम ही उद्घोषित होता था. हिंदी फ़िल्मों के सभी गीतगार इस काम के लिए उनके ऋणी रहेंगे. आज उनके कुछ शेर आपके सामने पेश हैं …
तआरुफ़ रोग बन जाए तो उसको भूलना बेहतर.
तआलुक बोझ बन जाए तो उसको तोड़ना अच्छा
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया
कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया
जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया
जो खो गया मैं उस को भुलाता चला गया
ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ
मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया
तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो
तुम्हें ग़म की क़सम इस दिल की वीरानी मुझे दे दो
ये माना मैं किसी काबिल नहीं हूँ इन निगाहों में
बुरा क्या है अगर ये दुःख ये हैरानी मुझे दे दो.
कल और आएंगे नग़मों की
खिलती कलियाँ चुनने वाले
मुझसे बेहतर कहने वाले
तुमसे बेहतर सुनने वाले
कल कोई मुझको याद करे
क्यूँ कोई मुझको याद करे
मसरूफ़ ज़माना मेरे लिये
क्यूँ वक़्त अपना बरबाद करे
मैं पल दो पल का शायर हूं …
साहिर अर्थात जादूगर। शब्दों के जादूगर ही थे साहिर। उनकी लेखनी से झरे गीतों का जादू आज भी सुधि श्रोताओं को मदहोश करने के लिए काफी है। सीधे-सादे बोलों में छुपी साहिर फिलासफी झकझोर देती है। गम के नगमे साहिर ने इतनी शिद्दत से रचे हैं मानो अश्कों को स्याही बनाया हो। रोमांटिक गीतों में उनकी मधुर कल्पना इतनी गहरी और मखमली हो जाती है, सुनकर मन के पंछी बेकाबू हो जाते हैं।
चेहरे पे ख़ुशी छा जाती है आँखों में सुरूर आ जाता है
जब तुम मुझे अपना कहते हो अपने पे ग़ुरूर आ जाता है
एक मुद्दत से तमन्ना थी तुम्हें छूने की
आज बस में नहीं जज़्बात क़रीब आ जाओ
दूर रह कर न करो बात क़रीब आ जाओ
याद रह जाएगी ये रात क़रीब आ जाओ
ये महलों ये तख़्तों ये ताजों की दुनिया
ये इंसाँ के दुश्मन समाजों की दुनिया
ये दौलत के भूके रिवाजों की दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है
दुनिया की निगाहों में भला क्या है बुरा क्या
ये बोझ अगर दिल से उतर जाए तो अच्छा
वैसे तो तुम्हीं ने मुझे बर्बाद किया है
इल्ज़ाम किसी और के सर जाए तो अच्छा
जब भी जी चाहे, नई दुनिया बसा लेते हैं लोग
एक चेहरे पे कई चेहरे, लगा लेते हैं लोग
छू लेने दो नाज़ुक होठों को
कुछ और नहीं है, जाम है ये
क़ुदरत ने जो हमको बख़्शा है
वो सबसे हंसीं इनाम है ये
आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तौलें
आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तौलें
हम मोहब्बत से मोहब्बत का सिला देते हैं
ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है
ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है
क्यूँ देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम
तुम मेरे लिए अब कोई इल्ज़ाम न ढूँढो
तुम मेरे लिए अब कोई इल्ज़ाम न ढूँढो
चाहा था तुम्हें इक यही इल्ज़ाम बहुत है
माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके
माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके
कुछ ख़ार कम तो कर गए गुज़रे जिधर से हम
आगे फिर कभी साहिर के और जज़्बाती व गहराई लिये उम्दा शेरों के साथ फिर से मुखातिब होउंगा . नमस्कार..
इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक
दैनिक पूरब टाइम्स