सुआ नृत्य या सुआ नाचा छत्तीसगढ़ की स्त्रियों का एक प्रमुख और रंगीन लोक नृत्य है, जो सामूहिक रूप से किया जाता है। यह नृत्य विशेष रूप से स्त्रियों की भावनाओं, सुख-दुख की अभिव्यक्ति और उनके अंगों के लावण्य को दर्शाता है। सुआ नृत्य का आरंभ दीपावली के दिन से होता है और यह अगहन मास तक जारी रहता है, जिससे यह छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा बन जाता है।
1. सुआ का अर्थ
सुआ का अर्थ होता है “तोता” नामक पक्षी। सुआ गीत मूलतः गोंड आदिवासी नारियों का नृत्य-गीत है, जिसे विशेष रूप से महिलाएँ ही गाती हैं। यह नृत्य और गीत केवल छत्तीसगढ़ में ही नहीं, बल्कि आदिवासी संस्कृति का भी प्रतीक है।
2. समारोह और उत्सव
सुआ नृत्य का आयोजन दीपावली के पूर्व से देवोत्थान एकादशी तक किया जाता है। यह अवधि धान की फसल के खलिहानों में आने से लेकर उनके परिपक्वता के बीच का समय होता है, जब कृषि प्रधान प्रदेश के लोग कृषि कार्य से थोड़ी राहत प्राप्त करते हैं।
3. परंपरा और आयोजन
- नृत्य की अवधि: दीपावली के समय शंकर और पार्वती के विवाह के गौरा पर्व के साथ सुआ नृत्य का आरंभ होता है और अगहन माह (दिसंबर-जनवरी) के अंत तक चलता है।
- सामग्री: इस नृत्य के दौरान महिलाएँ बाँस की टोकरी में धान रखकर उस पर मिट्टी का बना, सजाया हुआ सुआ रखती हैं। यह सुआ शंकर और पार्वती के प्रतीक के रूप में माना जाता है।
4. नृत्य की विधि
- महिलाएँ शाम के समय गाँव के किसी निश्चित स्थान पर एकत्र होती हैं, जहाँ वे टोकरी को लाल कपड़े से ढँक देती हैं।
- टोकरी को सिर पर उठाकर दल की कोई एक महिला चलती है और उसे किसानों के आँगन में रख देती हैं।
- महिलाएँ उसके चारों ओर गोलाकार खड़ी होती हैं, टोकरी से कपड़ा हटा दिया जाता है और दीपक जलाकर नृत्य किया जाता है।
5. संगीत और ताल
सुआ नृत्य में कोई वाद्य यंत्र का उपयोग नहीं होता। महिलाएँ तालियों की धुन पर नृत्य करती हैं। गीत की शुरुआत ‘तरी नरी नहा ना री नहना, रे सुवा ना …’ से होती है। ये गीत विरह, दाम्पत्य बोध, और मान्यताओं को सहज भाव में दर्शाते हैं।
6. परिधान
परंपरागत रूप से, सुआ नृत्य करने वाली महिलाएँ हरी साड़ी पहनती हैं, जो पिंडलियों तक आती है। आभूषणों में छत्तीसगढ़ के पारंपरिक आभूषण जैसे करधन, कड़ा, और पुतरी शामिल होते हैं।
7. सामाजिक महत्व
सुआ नृत्य न केवल एक मनोरंजन का साधन है, बल्कि यह सामाजिक एकता और महिलाओं की शक्ति का भी प्रतीक है। यह नृत्य महिलाओं को एक मंच प्रदान करता है, जहाँ वे अपनी कला का प्रदर्शन कर सकती हैं और अपनी सांस्कृतिक विरासत को संजो सकती हैं।
8. आधुनिक संदर्भ
हाल के वर्षों में, सुआ नृत्य को न केवल पारंपरिक अवसरों पर, बल्कि विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों और उत्सवों में भी प्रस्तुत किया जाता है। इससे छत्तीसगढ़ की संस्कृति को और पहचान मिलती है।
सुआ नृत्य छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर का एक अनिवार्य हिस्सा है। यह नृत्य न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि यह महिलाओं की सामूहिकता, परंपरा और सांस्कृतिक मूल्यों को भी प्रदर्शित करता है। सुआ नृत्य की जीवंतता और सुंदरता इसे छत्तीसगढ़ के लोक जीवन का महत्वपूर्ण अंग बनाती है, जो आगे भी नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जोड़े रखेगा।