कोणार्क सूर्य मंदिर (Konark Sun Temple) भारत के ओडिशा राज्य के पुरी जिले में स्थित एक प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल है और अपनी भव्य वास्तुकला के लिए विश्वविख्यात है।
इतिहास और निर्माण
- निर्माण काल: यह मंदिर 13वीं शताब्दी में (लगभग 1250 ई.) गंग वंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम द्वारा बनवाया गया था।
- समर्पित: सूर्य देव (सूर्य भगवान) को समर्पित यह मंदिर उनकी रथ की आकृति में निर्मित है।
- नाम का अर्थ: “कोणार्क” शब्द ‘कोण’ (कोना) और ‘अर्क’ (सूर्य) से बना है, जिसका अर्थ है “सूर्य का कोणीय स्थान”।
वास्तुकला
- मंदिर का आकार सूर्य देव के रथ के समान है, जिसमें 12 विशाल पहिये हैं और इसे 7 घोड़ों द्वारा खींचते हुए दिखाया गया है।
- ये 12 पहिये साल के 12 महीनों को दर्शाते हैं, और घोड़े सप्ताह के सातों दिनों का प्रतीक हैं।
- मंदिर में सुंदर और जटिल नक्काशियां उकेरी गई हैं, जिनमें देवताओं, मिथकों, पशु-पक्षियों और सामाजिक जीवन के चित्रण हैं।
विशेषताएं
- चुंबकीय पत्थर का उपयोग: माना जाता है कि मंदिर के निर्माण में ऐसे पत्थरों का उपयोग किया गया था, जिनमें चुंबकीय गुण थे। कहा जाता है कि मुख्य चुंबकीय पत्थर की वजह से मंदिर का स्थापत्य अद्वितीय बना था।
- वास्तुकला का चमत्कार: सूर्य की किरणें मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर सूर्य देव की मूर्ति को रोशन करती थीं।
- कामुक मूर्तिकला: मंदिर में उकेरी गई मूर्तियों में कुछ कामुक और जीवन के सुखद पक्ष को दर्शाती हैं, जो उस समय की कला और संस्कृति का हिस्सा थीं।
वर्तमान स्थिति
- मंदिर का बड़ा हिस्सा समय के साथ क्षतिग्रस्त हो गया है और अब केवल मुख्य संरचना के अवशेष मौजूद हैं।
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा मंदिर के संरक्षण का कार्य किया जा रहा है।
महत्व
कोणार्क सूर्य मंदिर भारतीय संस्कृति, कला और धार्मिक विश्वास का प्रतीक है। यह सूर्य भगवान की उपासना के साथ-साथ उस समय के स्थापत्य और शिल्पकला के उच्चतम स्तर को दर्शाता है।
कोणार्क सूर्य मंदिर आज भी पर्यटकों, इतिहास प्रेमियों और श्रद्धालुओं के बीच एक लोकप्रिय स्थल बना हुआ है।