छत्तीसगढ़ की धार्मिक और आध्यात्मिक भूमि पर अनेक तीर्थ और पंथों का योगदान रहा है, लेकिन दामाखेड़ा का विशेष स्थान है, जो कबीरपंथियों के लिए आस्था का सबसे बड़ा केन्द्र माना जाता है। यह छोटा-सा गाँव राजधानी रायपुर से लगभग 75 किमी दूर, बलौदाबाजार-भाटापारा जिले में स्थित है, और रायपुर–बिलासपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर सिमगा से लगभग 10 किमी की दूरी पर स्थित है।
इतिहास और स्थापना
दामाखेड़ा की पवित्रता और पहचान का श्रेय जाता है कबीरपंथ के 12वें गुरु, गुरु अग्रदास स्वामी जी को।
कहा जाता है कि आज से करीब 100 वर्ष पूर्व, उन्होंने इस स्थान पर कबीर मठ की स्थापना की थी। इस मठ के माध्यम से कबीर साहेब के विचारों, शिक्षाओं और मानवता के संदेश का प्रचार-प्रसार किया गया।
धार्मिक महत्व
- यह स्थान कबीर साहेब की वाणी, उनके दर्शन और उनके मूल सिद्धांतों को आत्मसात करने वालों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
- हर वर्ष यहाँ देश-विदेश से हजारों की संख्या में कबीरपंथी श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
- मठ में कबीर साहेब से संबंधित पवित्र ग्रंथ, दोहे, चौपाइयाँ और कलात्मक चित्रण सुरक्षित रखे गए हैं।
- समाधि स्थल, कबीर कुटिया और अन्य भवनों में कबीर की शिक्षाओं को बेहद सुंदर और कलात्मक ढंग से उकेरा गया है।
मुख्य स्थल
- समाधि स्थल – गुरु अग्रदास स्वामी जी की समाधि, जिसे श्रद्धा से नमन करने श्रद्धालु आते हैं।
- कबीर कुटिया – कबीरपंथी साधुओं की ध्यान-स्थली, जहाँ कबीर वाणी का जाप होता है।
- संग्रहालय एवं पुस्तकालय – कबीर साहित्य, पांडुलिपियाँ एवं कबीर साहेब के जीवन पर आधारित दस्तावेज।
- प्रत्येक वर्ष लगने वाला मेला
- फाल्गुन पूर्णिमा (होली से पूर्व) के अवसर पर यहाँ विशाल वार्षिक मेला लगता है।
- इस आयोजन में सत्संग, कीर्तन, भजन, भंडारा और कबीर वाणी पर प्रवचन होते हैं।
- इसमें देश-विदेश से कबीरपंथी संत और अनुयायी बड़ी संख्या में शामिल होते हैं।
दामाखेड़ा का संदेश
दामाखेड़ा केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि यह एक आध्यात्मिक साधना स्थल है, जो संत कबीर की शिक्षा –
“जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान”
और
“जहाँ दया वहाँ धर्म है, जहाँ लोभ वहाँ पाप”
को जीवन में उतारने की प्रेरणा देता है।